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पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/९

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में वे हिन्दी में एक पहलपूर्ण रचनाकार और प्रेरक शक्ति थे। माखनलाल चतुर्वेदी ऐसे हिन्दी के कवि और लेखक उनके ही द्वारा प्रेरित और निर्मित थे। उन्होंने हिन्दी गद्य को उसका वर्त्तमान रूप देने में जो कार्य किया, उसका सही मूल्यांकन करना कठिन है। वे अत्यन्त कर्मठ और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। हिन्दी भाषा के प्रचार और साहित्य-साधना की प्रेरणा देने में––विशेष कर पुराने मध्यप्रदेश में––उनका नाम जानकर लोग "करि गुलाब कौ आचमन" लेंगे।

आधुनिक हिन्दी को उसका वर्तमान रूप देने के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी में गहन चिन्तन और साहित्य में गंभीर राजनीतिक चिन्तन को अन्तर्भुक्त करने का सफल कार्य शायद सर्वप्रथम किया। वे गंभीर लेखक, विचारक और शैलीकार थे। उन्होंने कुछ कहानियाँ भी लिखी थीं। वे आज के युग में कैसी समझी जायेंगी––यह कहना मेरे लिए कठिन है। मेरे लिए तो इनमें रुचि लेने के लिए यह बात ही पर्याप्त है कि सप्रेजी के समान गंभीर चिन्तक और लेखक ने इस विधा का उपयोग किया।

इस संग्रह से मेरा वादरायण संबंध इतना ही है कि जब श्री देबीप्रसाद वर्मा ने इन कहानियों का संग्रह और सम्पादन कर लिया, तब उन्होंने मुझे लिखा कि मैं इन्हें प्रकाशित कराने का प्रयत्न करूँ। आज के युग में हिन्दी के प्रायः विस्मृत और पुराने प्रस्तरित (फॉसिलाइज्ड) लेखकों की कोई वस्तु प्रकाशित कराना कितना कठिन है, इसका मुझे बहुत काफी अनुभव है। मैं लेखकों या पुस्तकों का नाम न लूँगा, किंतु मुझे ऐसे ग्रन्थों के लिए प्रकाशकों या संस्थाओं को राजी करने में आठ से चालीस वर्ष तक लगे हैं। प्रकाशक तो व्यवसायी हैं। उनकी हिचक मैं समझ सकता हूँ। किन्तु हिन्दी की संस्थाएँ भी इस मामले में उदार नहीं हैं। कहीं कर्मठ होने पर भी कार्यकर्त्ता कल्पनाशील नहीं मिलते, कहीं पूर्वाग्रह काम करते हैं, कहीं 'लाल-फीताशाही' काम