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पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/११३

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मुद्रा राक्षस

अथये सूरहि चन्द के, उदये गमन प्रसस्त।
पाइ लगन बुध केतुतौ, उदयो हू भो अस्त।*

राक्षस---अजी पहिले तो तिथि नहीं शुद्ध है।

क्षपणक---उपासक?

एक गुनी तिथि होत है, त्यौं चौगुन नक्षत्र।
लगनहोत चौंसठ गुनो, यह भाखत सब पत्र॥
लगनहोत है शुभ लगन, छोड़ि कूर ग्रह एक॥
जाहु चन्द वल देखि कै पावहु लाभ अनेक॥


  • भद्रा छूट गई अर्थात् कल्यण को तो आपने जब चन्द्रगुप्त का

पक्ष छोड़ा तभी छोड़ा और संपूर्ण चन्द्रा पौर्णमासी है अर्थात् चन्द्रगुप्त का प्रताप पूर्ण व्याप्त है। उत्तर नाम, प्राचीन पक्ष छोड़कर दक्षिण जाना है अर्थात् यमकी दिशा को जाना है। नक्षत्र दक्षिण है अर्थात् आपका वास (विरुद्ध पक्ष) नक्षत्र और आपका दक्षिण पक्ष (मलयकेतु) नक्षत्र (बिना छत्र के) है। प्रथम इत्यदि, तुम जो हो उसकी बुद्धि के अस्त के समय और चन्द्रगुप्त के उदय के समय जाना अच्छा है अर्थात् चाणक्य की ऐसे समय जय होगी। लग्न अर्थात् कारण भाव में बुध चाणक्य पड़ा है इससे केतु अर्थात् मलयकेत का उदय भी है तौ भी अस्त होगा। अर्थात् इस युद्ध में चन्द्रगुप्त जीतैगा और मलयकेतु हारेगा। 'सूर अथऐ' इस पद से जीवसिद्ध ने अमङ्गल भी किया। अश्विन पूर्णिमा तिथि, भरणी नक्षत्र, गुरुद्धार, मेघ के चन्द्रमा, मीन लग्न में उसने यात्रा बतलाई। इसमे भरणी नक्षत्र गुरुवार, पूर्णिमा तिथि यह सब दक्षिण की यात्रा मे निषिद्ध हैं। फिर सूर्य मृत है चन्द्र जीवित है यह भी बुरा है। लग्न मे मीन का बुध पढ़ने से बुरा नीच का होने से बुरा है। यात्रा मे नक्षत्र दक्षिण होने ही से बुरा है!

ऽ अर्थात् मलयकेतु का साथ छोड़ दो तो तुम्हारा भला हो। वास्तव में चाणक्य के मित्र होने से जीवसिद्धि ने साइत भी उलटी दी ज्योतिषके