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पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/११४

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चतुर्थ अङ्क

राक्षस---अजी तुम और जोतिषियो से जाकर झगड़ो।

क्षपणक---आप ही झगड़िये, मैं जाता हूँ।

राक्षस---क्या आप रूठ तो नहीं गए?

क्षपणक---नहीं तुमसे जोतिसी नहीं रूसा है।

राक्षस---तो कौन रूसा है?

क्षपणक---(आप ही आप) भगवान्, क्योंकि तुम अपना पक्ष छोड़ कर शत्रु का पक्ष ले बैठे हो (जाता है)

राक्षस---प्रियम्बदक? देख कौन समय है?

प्रियम्बदक---जो आज्ञा (बाहर से ही आता है) आर्य? सूर्यास्त होता है।

राक्षस---(आसन से उठ कर और देखकर) अहा?

भगवान सूर्य अस्ताचल को चले---

जय सूरज उदयो प्रबल, तेज धारि आकास।
तब उपवन तरुवर सबै, छायाजुत भे पास॥
दूर परे ते तरु सबै, अस्त भये रवि ताप।
जिमि धन बिनस्वामिहि तजै, भृत्य स्वारथी आप॥

(दोनो जाते हैं)

इति चतुर्थाऽङ्कः।


अनुमार अत्यन्त क्रूरवेला क्रूरग्रहवेध में युद्ध आरम्भ होना चाहिए इसके विरुद्ध सोम्य समय में युद्वयात्रा कही, जिसका फल पराजय है।