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पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/१०२

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कर्म
 

साध्य है, अथवा चेतनाकी ऐसी गतिसे भी साध्य है जिससे अन्तस्सत्ता करण-सत्तासे पृथक् बोध होती है। अभीप्सा और समर्पणके भावसे, उपस्थित कार्यको करनेके लिये, दिव्य महती शक्तिका आवाहन करना भी एक प्रक्रिया है जिससे कार्य अद्भुत रीतिसे सुसम्पन्न होता है, यद्यपि इस प्रक्रियाको साधनेमें कुछ लोगोंको बहुत समय लगता है। अपने मन-बुद्धिके प्रयाससे कुछ करनेके बदले अन्त:- स्थित या ऊर्ध्वस्थित शक्तिसे कार्य कराने के कौशलको जानना साधनाका एक बड़ा रहस्य है। मेरे कहनेका यह अभिप्राय नहीं कि मन-बुद्धिका प्रयास अनावश्यक है अथवा उसके द्वारा कुछ नहीं होता―बात इतनी ही है कि यदि मन-बुद्धि हर कामको अपने ही भरोसे करे तो आध्यात्मिक व्यायामपटुओंके सिवा और सबके लिये, यह प्रयास कष्टप्रद ही होता है। न मेरे कहनेका यह अभिप्राय है कि यह दूसरी प्रक्रिया वह संक्षिप्त मार्ग है जिसकी हम कामना करते हैं। इस रास्तेको तै करनेमें भी, जैसा कि मैंने ऊपर कहा, बहुत समय लग सकता है। धीरता और संकल्पकी दृढ़ता साधनाकी प्रत्येक प्रक्रियामें ही आवश्यक है।

सामर्थ्य होनी चाहिये, यह बात सामर्थ्यवानों के लिये तो ठीक ही है―पर अभीप्सा और उस अभीप्साको

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