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पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/४०

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आधारके लोक और अंग
 

इन बातोंको अनुभव करता और जानता है; और इस लिये जब कभी यह हृत्पुरुष बाहरकी तरफ निकल पड़ता है तब यह तुरत ही बता देता है कि तुम्हारे अन्दर कौन-सी बात ठीक है और कौन-सी ठीक नहीं।

मानव सत्ताके घटक तत्व ये हैं―हृत्पुरुष ( जो पीछे रहकर सबको धारण करता है ), आन्तर मानसपुरुष, आन्तर प्राणपुरुष और आन्तर भूतपुरुष और बाह्य पुरुष अर्थात् मन प्राण और शरीरकी केवल बाह्य प्रकृति जोकि आन्तर पुरुषों के बाहर प्रकट होनेका यन्त्र या करण है। पर इन सबके ऊपर जीवात्मा है जो अपने प्रकट होने के लिये इन सबको प्रयुक्त करता है― यह श्रीभगवान्का ही एक अंश है; पर यह उसकी स्व-सत्ता बहिर्मुख मनुष्यसे छिपी रहती है, क्योंकि अपने ही इस अन्तस्तम अन्तरात्माके स्थानमें वह मानस अहंकार और प्राणगत अहंकारको लाकर बैठाता है। केवल वे ही लोग जिन्होंने अपने-आपको जानना आरम्भ किया है, अपने इस वास्तविक आत्माको जान पाते हैं; फिर भी यह जीवात्मा सदा मन, प्राण और शरीरके पीछे ही रहता है और सबसे अधिक प्रत्यक्ष रूपसे हृत्पुरुषके द्वारा ही प्रकट होता है। यह हृत्पुरुष स्वयं भी परमात्मा- का एक स्फुलिंग है। अपनी प्रकृतिमें इस हृत्तत्त्वका विकास जब होने लगता है तभी अलस्थित जीवात्मा-

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