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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/६८

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रंगभूमि


देखा करते थे। बिलकुल घराँव हो गया था। कोई बात बनी-बिगड़ी, जाके सारी कथा सुना देता था। पीठ पर हाथ फेरकर कहते--'बस जाओ, अब हम देख लेंगे। ऐसे आदमी अब कहाँ। सतजुगी लोग थे। आप तो अपने भाई ही ठहरे, साहब को धता क्यों नहीं बताते? आपको भगवान् ने विद्या-बुद्धि दी है, बीसों बहाने निकाल सकते हैं। बरसात में पानी जमता है, दीमक बहुत, लोनी लगेगी, ऐसे ही और कितने बहाने हैं।"

ताहिर-"पण्डाजी, जब आपसे भाईचारा हो गया, तो क्या परदा है। साहब पल्ले सिरे का घाघ है। हाकिमों से उसका बड़ा मेल-जोल है। मुपत में जमीन ले लेगा। सूरे को तो चाहे सौ-दो-सौ मिल भी रहे, मेरा इनाम-इकराम गायब हो जायगा। आप सूरे से मुआमला तय करा दीजिए, तो उसका भी फायदा हो, मेरा भी फायदा हो, और आपका भी फायदा हो।"

नायकराम-"आपको वहाँ से जो इनाम-इकराम मिलनेवाला हो, वह हमी लोगों से ले लीजिए। इसी बहाने कुछ आपकी खिदमत करेंगे। मैं तो दारोगाजी को जैसा समझता था, वैसा ही आपको समझता हूँ।"

ताहिर-"मुआजल्लाह, पण्डाजी, ऐसी बात न कहिए। मैं मालिक की निगाह बचा कर एक कौड़ी लेना भी हराम समझता हूँ। वह अपनी खुशी से जो कुछ दे देंगे, हाथ फैलाकर ले लूँगा; पर उनसे छिपाकर नहीं। खुदा उस रास्ते से बचाये। वालिद ने इतना कमाया, पर मरते वक्त घर में एक कौड़ी कफन को भी न थी।"

नायकराम-"अरे यार, मैं तुम्हें रुसवत थोड़े ही देने को कहता हूँ। जब हमारा-आपका भाईचारा हो गया, तो हमारा काम आपसे निकलेगा, आपका काम हमसे। यह कोई रुसवत नहीं।"

ताहिर-"नहीं पण्डाजी, खुदा मेरी नीयत को पाक रखे, मुझसे नमकहरामी न होगी। मैं जिस हाल में हूँ, उसी में खुश हूँ। जब उसके करम की निगाह होगी, तो मेरी भलाई की कोई सूरत निकल ही आयेगो।”

नायकराम-"सुनते हो बजरंगी, दरोगाजी की बातें? चलो, चुपके से घर बैठो, जो कुछ आगे आएगी, देखी, जायगी। अब तो साहब ही से निबटना है।”

बजरंगी के विचार में नायकराम ने उतनो मिन्नत-समाजत न की थी, जितनी करनी चाहिए थी। आये थे अपना काम निकालने कि हेकड़ी दिखाने। दोनता से जो काम निकल जाता है, वह डींग मारने से नहीं निकलता। नायकराम ने तो लाठो कंधे पर रखो, और चले। बजरंगो ने कहा-“मैं जरा गोरुओं को देखने जाता हूँ, उधर से होता हुआ आऊँगा।” यो बड़ा अक्खड़ आदमी था, नाक पर मक्खो न बैठने देता। सारा मुहल्ला उसके क्रोध से काँपता था, लेकिन कानूनी काररवाइयों से डरता था। पुलीस और अदालत के नाम ही से उसके प्राण सूख जाते थे। नायकराम को नित्य ही अदालत से काम रहता था, वह इस विषय में अभ्यस्त थे। बजरंगी को अपनी जिंदगी में कभी