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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/३६

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"कुछ पूछिये नहीं सरकार, कलेजे में आग लगी है; यही लौ लगी है कि या तो उसकी जान ले लें या अपनी जान दे दें। पर एक तो गरीब आदमी ठहरे दूसरे सारा गाँव और पुलिस कामतासिंह के कब्जे की है। हमारी सहायता करने वाला कोई नहीं है सरकार!"

ध्यानसिंह का मस्तिष्क सक्रिय हो गया। उन्होंने देखा कि कामतासिंह से बदला लेने के लिए रामचरण एक अच्छा प्रश्न बन सकता है। अतः वह बोले—"यह तो बड़ा गजब हो गया रामचरन! इस बेइज्जती से तो मर जाना अच्छा है। गाँव वालों को तो यह हाल मालूम हो गया होगा।"

"सब को नहीं तो हमारे पास-पड़ोसियों को तो मालूम ही हो गया, पर कामतासिंह के डर के मारे कोई सनक नहीं रहा है सब अनजान बने घूम रहे हैं, पर आपस में खुसुर-फुसुर चल रही है। इसी से हमने समझा है कि उन्हें पता लग गया।"

"तब तो अब तुम्हें चुप नहीं बैठना चाहिए इससे ज्यादा बेइज्जती और नहीं हो सकती। बेइज्जत होकर जिये तो क्या जिये!"

"बात तो सरकार यही है। इसलिए हम सरकार के पास आये हैं कि अब जैसा सरकार हुकुम दें वैसा करें।"

ध्यानसिंह कुछ क्षण सोच-विचार करने के पश्चात् बोले—"हिम्मत है?"

"सो तो जैसी आप सलाह देंगे वैसा होगा चाहे प्राण भले ही चले जाँय!"

"अच्छा तो सुनो!"

इसके पश्चात् दोनों में बहुत ही धीमे स्वर में वार्तालाप होने लगा।

( ३ )

वार्तालाप करने के पश्चात् ध्यानसिंह बोले—"खूब अच्छी तरह होशियारी से काम करना। पहिले उनका सब बखत कि किस समय क्या करते हैं, कहां रहते हैं, कहां जाते हैं। इन सब बातों को समझ