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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/३७

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लेना। बस! निकल भर आना—फिर हम सब ठीक कर लेंगे।"

"देखिये भगवान के हाथ बात है।" यह कहकर रामचरण चल दिया।

तीन दिन व्यतीत होगये।

कामतासिंह शाम को झुट-पुटे के लगभग शौच के लिए बाहर निकला करते थे। साथ में दो लठ बन्द जवान और 'शिकारी' रहता था।

आज भी कामतासिंह उसी समय उसी प्रकार शौच के लिए निकले।

एक स्थान पर पहुँच कर कामतासिंह ने साथ के आदमी के हाथ से जल का लोटा ले लिया और आगे बढ़कर जुवार के खेत के पीछे एक खुले मैदान में चले गये। शिकारी तथा दोनों आदमी उसी स्थान पर खड़े रहे। शिकारी भूमि सूँघता हुआ इधर-उधर टहलने लगा।

ठाकुर के जाने के दस मिनट पश्चात् ही जिधर ठाकुर गये थे उस ओर से ठाकुर का कण्ठ-स्वर सुनाई पड़ा। उन्होंने एक बार पुकारा "शिकारी।"

शिकारी तुरन्त चौकन्ना हो गया! एक क्षण के लिए उसने उस ओर देखा और दूसरे ही क्षण वह झपटकर उस ओर दौड़ा आगे। पहुँच कर उसने देखा कि कामतासिंह रक्त से लथपथ भूमि पर लोट रहे हैं और एक व्यक्ति भागा जा रहा है। शिकारी तुरन्त उस भागते हुए आदमी के पीछे दौड़ पड़ा। वह व्यक्ति कठिनता से बीस पचीस गज के फासले पर गया होगा कि पीछे से शिकारी उस पर टूट पड़ा। शिकारी के फांदने से वह व्यक्ति झोके में मुँह के बल गिरा परन्तु तुरन्त ही घूमकर खड़ा होने लगा। इसी समय शिकारी ने उसका गला पकड़ लिया। व्यक्ति के हाथ में छुरा था। उसने उससे दो बार तो किये, परन्तु फिर वह शिथिल पड़ गया और उसके हाथ से छुरा छूट पड़ा।

शिकारी ने दो-तीन झटके देकर उसका काम तमाम कर दिया।

यह व्यक्ति रामचरण अहीर था। शिकारी के शरीर से रक्त की