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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/५९

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४—कविता
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देख कर हँसते रहते हैं, किवा ऊँचा करते हैं। इसका यह कारण है कि उन पदों में भरे हुए भक्तिरस का स्वीकार अथवा उपभोग करने का सामर्थ्य उनमें नहीं होता। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं। ख़ून के समान भारी घटनाये जिस जगह हो जाती है उस जगह सब समझदार मनुष्य घबरा उठते है, परन्तु तीन-चार वर्ष के छोटे-छोटे लड़के वही आनन्द से खेला करते हैं। उन पर उस घटना का कुछ असर नहीं होता। अज्ञानता के कारण ख़ून के समान भयानक घटनाओं की भयङ्करता का विचार ही जब उन लड़कों के मन में नहीं आता, तब उनको उस विषय में भय कैसे मालूम हो सकता है?

कवियों का यह काम है कि वे जिस पात्र अथवा जिस वस्तु का वर्णन करते है उनका रस अपने अन्तःकरण में लेकर उसे ऐसा शब्द-स्वरूप दे देते हैं कि उन शब्दों को सुनने से वह रस सुनने वालों के हृदय में जागृत हो उठता है। ऐसा होना बहुत कठिन है। सच तो यह है कि काव्य रचना में सब से बड़ी कठिनता जो है वह यही है। रामचन्द्र और सीता को हुए कई युग हुए। तुलसीदास को भी आज कई सौ वर्ष हुए। परन्तु उनके काव्य में किसी-किसी स्थान पर इतना रस भरा हुआ है कि उस रस के प्रवाह में पड़ कर बहे बिना सहृदय मनुष्य कदापि नहीं बच सकते। रामचन्द्र के वन-गमन-समय सीता कहती हैं—

प्राणनाथ करुणायतन, सुन्दर सुखद सुजान।
तुम बिन रघुकुल-कुमुद-विधु, सुरपुर नरक-समान॥
मातु पिता भागिनी प्रिय भाई।
प्रिय परिवार सुहृद समुदाई॥
सासु ससुर गुरु सुजन सुहाई।
सुठि सुन्दर, सुशील सुखदाई॥