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पृष्ठ:रसज्ञ रञ्जन.djvu/६०

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रसज्ञ-रञ्जन
 


जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते।
पिय-बिनु तियहि तरणि ते ताते॥
तनु धन धाम धरणि पुर राजू।
पति विहीन सब शोक समाजू॥
भोग रोग सम भूषण भारू।
यम-यातना सरिस संसारू॥
प्राणनाथ तुम बिनु जग माही।
मो कहं सुखद कतहुँ कोउ नाहीं॥
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी।
तैसिय नाथ पुरुष बिनु नारी॥
नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे।
शरद-विमल-बिधु-बदन-निहारे॥
खग मृग परिजन नगर बन, बलकल बसन दुकूल।
नाथ साथ सुर-सदन सम, पर्णशाल सुखमूल॥
वनदेवी वनदेव उदारा।
करिहैं सासु ससुर सम प्यारा॥
कुश-किशलय साथरी सुहाई।
प्रभु संग मञ्जु मनोज तुराई॥
कन्दमूल फल अमिय हारू।
अवध सहस सुख सरिस पहारू॥
क्षरण-क्षण प्रभु-पद-कमल विलोकी।
रहि हौ मुदित दिवस जिमि कोकी॥
वन दुःख नाथ कहेउ बहुतेरे।
भय विषाद परिताप घनेरे॥
प्रभु-वियोग लवलेश समाना।
सब मिलि होहिं न कृपानिधाना॥