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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/६५

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  • शाहीमहलसरा तरफ़ देख कर चोली,-"क्या है ?"

लौंडी ने सिर झुका कर अदब से कहा- हुजूर ने मुझे हुक्म दिया था कि.... नाज़नी ने जल्दी से बात काट कर कहा, "हकीम इलाहीम से नुसखा लिखा कर जल्द ला ।" । लौंडी,--" जी हां; लेकिन, हकीम कहता है कि जब तक मैं रोगी को देख न लंगा, दवा हगिज़ न दूंगा।" नाज़नी,-( त्योरी बढ़ा कर) “न देगा ! क्या तूने अशर्फियों की थैली उसे नहीं दी ?" लौंडी,-"हज़रत ! उसने थैली वापस करदी और कहा कि, * मैं मरीज़ के देखे बगैर अशी भी न लूंगा। भाखिर मैं वापिस चली आ रही हूं।" यों कह कर उस लौंडो ने अशर्फियों से भनी हुई थैली अपने कुरते के जेब में से निकाल कर उस नाज़नी के आगे रखदी। नाज़नी ने कहा,-" बुदा पागल होगया है क्या, जो उसने अशर्फियां भी न ली!" लौंडी ने कहा,--"हुजर, वह झको तो हुई है ! लेकिन बातों ही बातों में उसके मुह से दो बातें इस किस्म की निकल गई कि जिस से मैं समझती हूं कि उसका काम आसमानी ने ज़रूर भरा है और आमानी से उसे कोई गहरी रकम मिली है या मिलने वाली है।" यह सुनकर वह नाज़नी मसनद पर जावैठी और लौंडी को बैठने का इशारा करके बोली,-"उस शैतान के बच्चे ने क्या कहा?" लौंडी,-- उसने मुझे झिझकार कर कहा कि,-तू ते मुझे शाही महलसराको लौंडी जान पड़ती है और जिस के लिये तू 'अफ़लातूनी' नुसखा मांग रही है, वह शख्स तेरा शौहर न होकर, जैसा कि तू बयान करती है, जरूर मरीज़- उल इश्क' होगा! » फिर उसने कहा कि,--“इतनी अशर्फियां तो मुझे राह चलती भिखमंगिने