सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

  • शाहीमहलसरा का खत दियाथा कमरेके अन्दर आई और आसमानीको ओर वेतरह धूरकर बोली,-'कम्बख्त,तूमेरे कमरेके अन्दर क्या समझकर आई ?"

सस नाज़नीको देखते ही आसमानी सर्द होकर कांपने लग गई थी इसलिये लगती हुई जबान से बोली,- हुज़ार ! इस चाहे को गिरफ्तार करने में यहां आई हूं!" यह सुनकर उस नाज़नीने एक भरपुर तमाचा उसके बांए गाल पर जमाया जिसके लगतेही वह चकर खाकर कमरे के फर्श पर अप ना गाल पकड़ कर बैठ गई और कुछ देरके बाद वोली,-'तो हुज़र" मुझे क्या हुक्म होता है ?" यह सुनकर उस नाज़नी ने एक लात उसे माग और कहा, "जहन्नुम में जा। वह,-"जर, अगर मैं यह जानती होती कि यह चिडिया हजरत के तीरे मिज़गां का निशान हो चकी है तो इसपर मैं इर्गि नज़र न डालती। और न तेरी मल का जहरन !- इतना कहकर उस नाजनीन्द्रे . एक लात उसे लगाई और और कहा, "वस, अब जल्द उठ और यहांसे अपना काला मुहकर औरयाद रस्त्रकि अगर अव सिवाय तैने फिर कोई शरारतकी तो यही कातिल छुरा (दिखला कर) तेरे कलेजेके पार तक पहुंचा दीया जायगा। ___ गरज यह कि शैतानकी नानी समानी फ़ौरन उठी और वहां घलदी। उसके जाने पर मैं पलङ्गसे उठ खड़ा हुआ और वोला, "हुजूर तशरीफ रक्खें! " मेरे, उस सवाल को सुनकर वह नाजनी खिलखिला कर हंस पड़ी और बड़ी मुहब्बत के साथ मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर उसने कहा,-- ____ जनाबमन! चोचले पहने दो और मुझे अपना एक सच्चा दोस्तसमझकर वैसी ही पागू किया करे जैसी दोस्तों में हुआ करता है।