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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७०

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  • लखनऊ को कत्र थी कि जिसमें तुम बखूबी होश में न आ सको। आज भी तुम्हें बदस्तूर दवा के साथ शराब पिलाई गई थी, लेकिन शुक्र है खुदा का कि दिल में पूरी ताकत आने से शराब का ज़ोर जाता रहा और तुम होश में आ गए । बस, यही तुम्हारे यहां पर लाए जाने का किस्सा था, जो तुम्हारे आगे मुफस्सिल बयान किया। अब मेरी राय यह है कि थोड़े दूध के साथ एक दवा तुम पं'ओ और सेा रहो; फिर सुवह को, और जो कुछ बातें तुम्हें करनी होगी, कर लेना । "

मैंने कहा,--“साहब! ऐसा न कहो, अब तो चंदा जब तक भर. पेट बातें कर के अपने दिल का बोझा हलका न कर लेगा, आपकी एक न सुनेगा । अच्छा, यह तो बतलाओ कि इस वक्त दिन है, या रात; और कै बजने का वक्त है ? " : उसने कहा,-- इस वक्त रात है और तीन बजने में थोडी होदेर है । मैं,- भला,तुम कब तक यहां ठहर सकती हो?" यह,--- मैं, अगर कोई तुम्हारा काम है। तो, सुबह तक बराबर ठहर सकती हूं |" मैं,-" इसमें कोई हर्ज तो न होगा ?" पहा-“ नहीं, कोई हर्ज न होगा; क्योंकि बादशाह सलामत तो शिकार के लिये कई दिनों से लखनऊ से बाहर गए हुए हैं, इसलिये मैं आसानी से यहां ठहर सकती हूं। और अगर कोई ऐसीही ज़रूरत आएगी तो मेरी लौंडी फ़ौरन मुझे ख़बर देगी।" मैं,- आप बादशाह के हमराह नहीं तशरीफ़ लेगई ? " वह,-" मैं जाती तो ज़रूर, लेकिन तुम्हारी वजह से लाचार, न जासकी और तबियत नासाज' का बहाना करके रह गई ! आखिर मैं जाती तो तुमको किसके सुपुर्द कर जाती ?" मैं,-" अच्छा, पेश्तर आप यह तो बतलाएं कि, आप असली हैं, या नकली ?" - मेरी बात सुन कर उसने मुझे घर कर देखा और वे जान कर