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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७१

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  • शाहोमहलसरा कहा,-"फिर " आप आप ! - मगर खैर ! लेकिन ' नकली ' और 'असली' के क्या मानी ? "

मैं, क्या तुम इतनी जल्दी उस बात को भूल गई! अजो दोस्त, जिस गोल कमरे में तुमने मुझे पेश्तर कैद किया था, उसमें एक रोज़ एक औरत बिल्कुल तुम्हारोसी ही सूरत बना कर मुझे मारने आई थी। वह-आह, उस बात का तो मैं बिलकुल भूलही गई थी, लेकिन अब सारी बातें याद हो आई । " ___ मैंने कहा- तो आपने उस औरत का पता ज़रूर लगाया होगा कि दरअसल वह औरत कौन थी ?" __ वह,-" हां, कुल बातों का पता मैंने लगा लिया। यानी मेरी सूरत की औरत बन कर जो आई थी, वह नज़ार की आशना थी जिसकी बदौलत आलमानी तुम्हारे खून की प्यासी होरही है और तुम मदलसरा के अन्दर इतनी तकलीफें भोग रहे है ! मैं,-"और आपकी लौंडी ने जो यह खबर दी थी कि, "जहां. पनाह आरहे हैं वह ख़बर कैसी थी ?" वह,-" विलकुल गलत ! यानी उसा बदकार की एक लौंडी, मेरी लौंडो की सूरत बनकर वहां पहुंची थी और वह बात उसोने कही थी, जिसे सुनकर मैं सन्नाटे में आगई और चट मैंने एक कल दबाकर वहां का चिराग गुल कर दिया। इसके बाद जब मैंने वहांसे तुम्हें उठा ले जाने के लिये तुम्हारी पलंग पर हाथ बढ़ाया तो उस पर तुम्हास कहीं पता ही न था !!" ___ मैंने कहा,-" हां, चिराग गुल होतेही किसी मजबूत कलाई ने मुझे पकड कर बेहोश कर दिया, फिर जब मेरी आंखें खुली तो मैंने अपने ता भासमानी की कैद में पाया ।" इसके बाद फिर जितने दिनोंतक मैं उस परीजाल के पास ले यायब रहा, और उतने दिनोंतक जो कुछ मुझपर बीता था, इसका