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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१४३

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श्यामास्वप्न

फायदा इस्में सिवा रंज के ऐ यार नहीं
रख नज़र सू ए खुदा-

इसको बड़े ध्यानपूर्वक सुना, लंबी सांस ली और उन्हें किसी प्रकार विदा दे आप अकेले ही लेट गए. अब दस बज गया था . गीत सुनते सुनते मेरी आँख नहीं लगी थी . अंत को जब सब उठ गए श्यामसुंदर विलाप करने लगा-

"आज की रात कैसे कटैगी इस गीत ने तो और मुझै बेकाम कर दिया-रह रह के मुझै प्रानप्यारी की सुधि आती है . यह रात मुझै साँपिन सी हो गई मुझे कुछ भी नहीं सुहाता . हायरे ईश्वर ! क्या करूँ कहाँ जाऊँ. मैं अब जी नहीं सक्ता . प्यारी ! प्रानप्यारी ! हाय ! क्या तुम्हें दया नहीं आती बस हो चुका, इतना व्यर्थ क्यों सताती हो. हायरी पापिन ! मैं कुछ भी न कर सका . तूने मेरी कुछ दया न देखी उस दिन की करुणा भूल गई ? ठीक है इष्ट देवता का मन पाषाण से भी कठोर होता है. अब मेरे लिए कौन सी दिशा रह गई है जिधर जाऊँ ." इतना रोकर हाथ में तरवार उठा कर कहने लगा "हायरे निर्दई काम ! तूने मुझे क्या-का-क्या कर डाला. देवी ! अब तू ही मेरे कंठ में लग जा और मेरे दुःख का अन्त कर. तू भी आज लौं ऐसे कोमल कंठ में न लगी होगी. आज इस विरही की गलबाहीं दे विरह को हटा, तेरी धार न बिगड़ेगी मैं फिर सान धरा दूंगा. पर मेरी कही तो कर-चांडालिन चंडिके ! क्या तू भी मेरी वैरिन हो गई ? लोग तो देवी की स्तुति और पूजा करके अपने सब दोष छुड़ाते हैं-मैंने इतनी तेरी स्तुति की, तू तनिक भी न पिघली; ठीक है-“दुर्बले देवघातकः !"-मैं आज दुर्बल हूँ न." इतना कह तरवार की धार को ज्यौं ही गले से लगाया विचारा उधो पहुँच कर हाथ रोक लिया . श्यामसुंदर चिहुँक पड़े कि यह आधी रात को और कौन आपत्ति आई, ऊधो को देख बोले-“तू इतनी रात को