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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२५१

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बालक जानि तजै करुणा करि।
वे अति ढीठ भये दल सहरि॥
केहुँ न भाजत गाजत हैं रण।
बीर अनाथ भये बिन लक्ष्मण॥२३२॥
जानहु जै उनको मुनिबालक।
वे कोउ हैं जगती-प्रतिपालक॥
हैं कोउ रावण के कि सहायक।
कै लवणासुर के हित लायक॥२३३॥
भरत--बालक रावण के न सहायक।
ना लवणासुर के हित लायक॥
हैं निज पातक-वृक्षन के फल।
मोहत हैं रघुवशन के बल॥२३४॥
जीतहि को रणमाँझ रिपुघ्नहि।
को करै लक्ष्मण के बल विघ्नहि॥
लक्ष्मण सीय तजी जब ते बन।
लोक अलोकन पूरि रहे तन॥२३५॥
छोडोइ चाहत ते तब ते तन।
पाइ निमित्त करेउ मन पावन॥
शत्रुघ्न तज्यो तन सोदर लाजनि।
पूत भये तजि पाप समाजनि॥२३६


(१) जै = जिन, मत।