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पृष्ठ:सप्तसरोज.djvu/१०३

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उपदेश
 

वह असामियोपर जुल्म करते रहें और पुलिस दखल न दे। इतने हीके लिये वह सैकडों रुपये मेरी नज़र करते हैं और खुशामद घालूमें। ऐसे अक्लके दुश्मनोंपर रहम करना हिमाकत है। जिलेमें मेरे इस इलाकेको सोनेको खान कहते है। इसपर सबके दात रहते हैं। रोज एक-न-एक शिकार मिलता रहता है। जमींदार निरे जाहिल, लएठ, जरा-जरा सी बातपर फौजदारिया कर बैठते हैं। मैं तो खुदासे दुआ करता रहता हूँ कि यह हमेशा इसी जहालतके गढेमे पडे रहें। सुनता हूँ, कोई साहब आमतालीमका सवाल पेश कर रहे हैं, उस भलेमानुसको न जाने यह क्या धुन है। शुक्र है कि हमारी आली फहम सरकारने उसे नामंजूर कर दिया। बस,इम सारे इलाकेमे एक यही आपका पट्टीदार अलबत्ता समझदार आदमी है। उसके यहां मेरी या और किसी की दाल नहीं गलती और लुत्फ यह कि कोई उससे नाखुश नहीं। वस मीठी-मीठी बातोंसे मन भर देता है। अपने असामियों के लिये जान देनेको हाजिर और हलफसे कहता है कि अगर मैं जमींदार होता तो इसी शख्सका तरीका अख्तियार करता। जमीन्दारका फर्ज है कि अपने असामियोंको जुल्मसे बचाये। उनपर शिकारियोंका वार न होने दे। बेचारे गरीब किसानोंकी जान के तो सभीगाहक होते हैं और हलफसे कहता हूँ, उनकी कमाई उनके काम नहीं आती। उनकी मेहनतका मजा हम लूटते हैं। यों तो जरूरतसे मजबूर होकर इन्सान क्या नहीं कर सकता, पर हक यह है कि इन बेचारोंकी हालत वाकई रहमके काबिल है और जो सख्स उनके लिये सीना-सिपर दो सके उसके कदम