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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम उनकी आयुके परिपक्व भागका लाभ नहीं उठा पाते। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि हम कुछ मिथ्याभिमानसे पीड़ित है। लगता है, नेताओंका थोड़ा-बहुत बीमार रहना हमने, और उन्होंने भी, एक गुण मान लिया है। इसी प्रकार यदि वे कम उम्र में ही हमें छोड़कर चले जाते हैं, तो हम इसका उल्लेख एक बड़ी विशेषताके रूपमें करते हैं। मुझे लगता है कि नेता और अन्य लोग भी, किन्तु मुख्यतः नेता, बीमार होना या बीमार रहना पाप समझें, भले ही उनकी यह बीमारी लोक-सेवा करते हुए ही क्यों न आई हो। स्वर्गीय न्यायमूर्ति तैलंगसे[१] लेकर यदि गोविन्द राव तक नेताओंपर निगाह डालें तो हमें मालूम होगा कि इनमें से ज्यादातरकी बीमारी ऐसी थी जो अच्छी हो सकती थी। हम अपने स्वास्थ्यकी रक्षा कैसे करें यह जानना हम सबका कर्त्तव्य है; और नेताओंका तो और भी अधिक है।

मेरा अनुभव यह है कि हममें से बहुत से लोग अपने बचपनमें ही अपनी मृत्युके बीज स्वयं ही बो लेते हैं और एक हदतक अज्ञान-वश और असंयत प्रेमके कारण हमारे माँ-बाप ही ऐसे बीज बोते हैं। हम बचपन में विवाह हो जानेसे अथवा विवाह हुए बिना ही प्रायः स्थूल ब्रह्मचर्यका भी त्याग कर देते हैं। हमारे आहारके पदार्थ प्रायः स्वादकी दृष्टिसे चुने जाते हैं अथवा उद्देश्य केवल शरीरमें चर्बी बढ़ाना होता है। जिन्हें मानसिक शक्तिका उपयोग अधिक करना है और जिनका कामकाज बैठे रहनेका है उनके आहारके पदार्थोंमें और उनसे भिन्न लोगोंके आहारके पदार्थों में अन्तर होना चाहिए। किन्तु उनके आहारके पदार्थ इस दृष्टिसे कभी नहीं चुने जाते। मुझे विश्वास है कि मानसिक शक्तिका उपयोग करनेवाले लोगोंके लिए अहमदाबाद-जैसी जलवायुमें अधिक घी खाना अन्तमें स्वास्थ्यके लिए अवश्य हानिकर सिद्ध होगा। उन्हें दालोंका उपयोग बहुत कम करना चाहिए। जिन्हें शारीरिक श्रम करना है उन्हें दालोंका उपयोग अधिक करना चाहिए। उनका काम इसके बिना नहीं चल सकता। किन्तु जिन लोगोंको शारीरिक श्रम कम करना होता है उनके लिए दालोंका अधिक उपयोग करना विषवत् है। हमारे लगभग सभी विद्यार्थी कब्जकी शिकायत करते हैं, क्योंकि उनके आहारमें मसाले और दाल-जैसी चीजें बहुत होती हैं और उनका परिणाम तो यही होता है। फिर अंडीका तेल, एपसम सॉल्ट या फ्रूट सॉल्ट लेकर पेट खराब कर लेते हैं; और अन्तमें मृत्युके मुखमें चले जाते हैं। जो तत्त्व ताजे फलोंमें होते हैं वे हमें अपने सामान्य आहारमें से नहीं मिल सकते और यदि हम अपने सामान्य आहारके बजाय सप्ताहमें किसी एक दिन ताजे फलोंका नियमपूर्वक उपयोग करें तो कब्ज चला जायेगा और शरीरका रक्त शुद्ध हो जायेगा। मैं आहारमें एक साथ कोई परिवर्तन करनेपर जोर नहीं देता। मैं जानता हूँ कि इस बातको जन-समाज स्वीकार नहीं करेगा किन्तु अपने स्वास्थ्य में सुधारके उद्देश्यसे लोग मसालोंका उपयोग सावधानीसे कर सकते हैं और ताजे फल खा सकते हैं। कोई भी यह नहीं कहेगा कि इसके लिए कोई बहुत बड़ी बात करनी पड़ती है। हमें कॉफी, चाय, कोको आदिकी आदत हो गई है, यह तो सचमुच अत्यन्त भयंकर है। मेरा खयाल है कि जिन्हें चाय पीनी ही हो वे यह

  1. १. बम्बई उच्च न्यायालयके; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके एक संस्थापक।