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पत्र: डब्ल्यू० एस० इर्विनको

अँगूठे लगानेको बाध्य किया गया। हमें यह नहीं बताया गया कि उन कागजातोंमें क्या लिखा है, और हमें उसकी प्रतियाँ भी नहीं दी गईं।

उनमें से हीरामन लुहार नामके एक व्यक्तिने मुझे बताया कि इतवार २० तारीखको आपके कर्मचारियोंने उसे इसलिए पीटा कि उसने उन कर्मचारियोंसे हुज्जत की जो उसका भूसा ले जानेकी कोशिश कर रहे थे। और उसे गाँववालोंके बीच-बचाव और बड़ी आरजू-मिन्नतके बाद छोड़ा। हीरामनके भतीजे नेपाली और बेटे जपालने मुझे बताया कि वे मेरे पास इस घटनाकी खबर देने आ रहे थे। शोर यह मचाया गया कि वे थाने जा रहे हैं। इसपर आपके आदमी उनके पीछे दौड़े। उन्हें पकड़ लिया, (ऐसा बयान किया गया है) और आपके पास ले गये। उन्होंने यह भी बताया कि आपने उन्हें कोड़े लगाये। उनमें से एकने अपने टखनों और पीठपरके गहरे निशान दिखाये। आपने उन्हें मुर्गीखाने भिजवा दिया और प्रत्येकपर रु० १० जुर्माना किया। उन्हें आधी रातको यह वायदा करनेपर ही छोड़ा गया कि वे सुबह जुर्माना भर देंगे। इन जुर्मानोंके लिए महाजन लीलाधर साहने अगले दिन सुबह आपके प्रतिनिधिको एक जमानत दी।

काठा गाँवका जदुराई, मानसिंह रायका बेटा, २६ तारीखको मेरे पास मोतीहारी आया और उसने कहा कि मेरे पास ६ बीघे जमीन थी और मैं नीलकी खेतीके बदलेमें रु० ७५ तावान अदा कर चुका था; कारखानेको एक हल न दे पानेके कारण मुझपर रु० १० का जुर्माना किया गया और जुर्माना अदा न कर पानेपर मुझे अपनी जमीनसे बेदखल कर दिया गया तथा मुझे एक दस्तावेजपर दस्तखत करने पड़े। उसने मुझे रु० १४-६-९की तारीख १३२३की[१] सं० १०२ एक रसीद भी दिखलाई।

ऐसे मामले आपकी निगाहमें लाना मैं बिलकुल ठीक समझता हूँ। यदि आप इन घटनाओंपर, जिन्हें मैंने बयान किया है, प्रकाश डालेंगे तो मैं अनुग्रह मानूँगा।

आपका विश्वस्त,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १०८, पृष्ठ १७३-४।
 
  1. १. यहाँ मूलमें कुछ भूल प्रतीत होती है।