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३३०. पत्र: बिहारके मुख्य सचिवको

बेतिया
मई ३०, १९१७

चम्पारनमें भू-सम्पत्ति सम्बन्धी स्थितिके बारेमें आपका २७ तारीखका पत्र मुझे मिल गया है।

अगले सोमवार, ४ जूनको दोपहरको रांचीमें लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयसे मिलनेमें मुझे बड़ी खुशी होगी।

जिस उद्देश्यके लिए मैं चम्पारन आया हूँ यदि उसके लिए ईमानदारीसे काम करूँ तो आपके पत्र में उठाये गये कतिपय प्रश्नोंको में अनदेखा नहीं कर सकता।

रैयतका कहना है कि बागान-मालिक अपने स्वार्थकी पूर्तिके लिए कुछ भी करनेसे नहीं हिचकेंगे। मैं जबसे यहाँ आया हूँ तभी से देख रहा हूँ कि हर बातमें, हरएकपर मालिकीका अनुचित और बहुत अधिक दबदबा है। उन्होंने मुझे चम्पारनसे निकलवाने के लिए भरसक प्रयत्न किया है। वे उन सम्माननीय सज्जनोंपर कीचड़ उछालनेमें तनिक भी नहीं हिचके जिन्होंने व्यक्तिगत रूपसे काफी आत्मत्याग करके मुझे बहुमूल्य सहायता दी है। उन्होंने रैयतको मेरे पास आनेसे रोकनेके लिए कमसे-कम “नैतिक प्रबोध” का सहारा तो लिया ही है। ढोकरहामें मुझे एक अफसोसनाक नजारा देखनेको मिला। मैनेजर और सब-डिवीजनल अफसरकी मौजूदगीमें दो-तीन व्यक्ति लगभग ५०० लोगोंकी भीड़के सामने कोठीका गुणगान करने लगे।बाकी सभी लोगोंने कोठीकी शिकायत की कि जिरात-जमीन उनपर थोप दी गई है और हुक्म न माननेपर उनसे जुर्माने वसूल किये गये हैं। मैनेजर इन गवाहोंको लोहरियासे यह कहने के लिए लाया था कि लोहरियामें किसीको कोई शिकायत नहीं और ढोकरहामें शिकायतें होनेकी वजह है केवल शोर मचानेवाले एक-दो लोगोंकी शरारत। उसके बादसे लोहरियाकी रैयतके कई लोग आकर ठीक उसी तरहकी शिकायतें कर गये हैं जैसी कि ढोकरहाके लोगोंने की थीं। ध्यान देनेकी बात है कि यदि रैयतके साथ पूरा न्याय किया जाये, तो मालिकोंकी वार्षिक आमदनीमें भारी कमी आ जायेगी और कई ऐसे विशेषाधिकार भी छिन जायेंगे जो अभी तक उनको मिले हुए हैं। मैं ऐसी परिस्थितिमें रैयतके इस बयानको बिलकुल निराधार तो नहीं मानता कि कोठियोंने मेरे कार्यको बदनाम करने और मुझे रैयतके बीचसे हटाने के लिए जान-बूझकर अग्निकांड कराये हैं। रैयत यह भी कहती है कि इतना तो मानना ही चाहिए कि वह कमसे-कम अपना स्वार्थ तो पहचानती है और इसीलिए वह आगजनी-जैसी हरकतें करके खुद अपना नुकसान नहीं करेगी। मैंने ढोकरहा-अग्निकांडकी अपनी पड़तालके[१]निष्कर्ष जिलाधीशके पास भेज दिये हैं। मैं अपने पत्रकी एक प्रति श्री हेकॉकके[२] लिए नत्थी कर रहा हूँ। फिर

  1. १. और
  2. २. देखिए “पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको”, २२-५-१९१७।