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परिशिष्ट ५

गांधीजीसे भेंटके सम्बन्धमें माननीय मॉडकी टिप्पणी

मई १०, १९१७

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१० मईको श्री गांधीके साथ मेरी काफी लम्बी वार्ता हुई...।

हमारी वार्ता अत्यधिक स्पष्टवादिताके साथ विविध विषयोंपर उत्तर-प्रत्युत्तरके ढंगसे हुई थी। मैं उस सारी वार्ताका सारांश यहाँ पेश नहीं कर सकता। उस सबका निष्कर्ष यही था कि जब मैंने उनको सुझाया कि अबतक वे यथेष्ट साक्ष्य जुटा चुके होंगे और अब अपना प्रतिवेदन तैयार करनेकी स्थितिमें होंगे, तो उन्होंने एक प्रारम्भिक प्रतिवेदन भेजनेकी बात तुरन्त मान ली और यह भी मान लिया कि इस बीच उनके सहायक लोग साक्ष्य दर्ज करना बन्द कर देंगे और वे केवल उन नये-नये गाँवोंमें जाकर जहाँ बागान-मालिकों या रैयतकी ओरसे उनको विशेष तौरपर बुलाया जायेगा, स्वयं ही चुपचाप जाँच-पड़ताल करेंगे। मैंने सुझाव रखा कि उनको अब सहायकोंकी सहायता नहीं लेनी चाहिए। इसपर उन्होंने कहा कि वे इसके बारेमें कोई निश्चित वचन नहीं दे सकते और उनको इस बातसे बड़ी व्यथा पहुँची कि उन सहायकोंके उद्देश्य और मंशाके बारेमें लोगोंको अविश्वास हुआ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि किसीका यह विश्वास है कि वे लोग इस आन्दोलनको एक यूरोपीय-विरोधी आन्दोलन मानते हैं या पीठ पीछे आपसमें इसी तौर-तरीकेसे इसके बारेमें बातचीत करते हैं, तो वह सरासर गलत है। क्योंकि उनकी भावना तनिक भी इस प्रकारकी नहीं है। उन्होंने कहा कि वे बागान मालिकोंके सामने कुछ निश्चित प्रस्ताव रखना चाहते थे, जिनको यदि स्वीकार कर लिया जाये तो वे अपने सारे कागजात नष्ट करके यहाँसे चल देंगे, परन्तु उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके खयालसे इससे कोई ज्यादा फायदा नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने बागान-मालिकोंके सामने जो एक-दो सुझाव व्यक्तिगत रूपसे रखे थे उनपर उनकी प्रतिक्रिया आशानुकूल नहीं हुई थी। मैंने कहा कि मेरे खयालसे तो बागान-मालिकोंके साथ उनके बात करनेका तनिक भी फायदा नहीं और उनको बागान मालिकोंसे एसी आशा नहीं करनी चाहिए कि वे लोग उनको [श्री गांधीको] किसी भी तरहका प्रस्ताव रखनेका किसी भी रूपमें अधिकारी मानें; अच्छा तो यह रहेगा कि उन्होंने जो सामग्री इकट्ठी कर ली है उसके आधारपर वे अपना प्रतिवेदन तैयार कर लें और उसे सरकारके पास, या यदि वे उसे भारत-सरकारके पास भेजना बेहतर समझें, तो उसे भेज दें। उन्होंने कहा कि भारत सरकारके सामने मामला ले जानेकी उनकी तनिक भी इच्छा नहीं है; उनका अपना विचार तो सबसे पहले स्वयं बागान-मालिकोंसे बात करनेका था और यदि इसमें विफलता मिले तो स्थानीय अधिकारियोंके पास जानेका, और यदि वे भी सन्तुष्ट न कर सकें, तो स्थानीय सरकारके पास और यदि स्थानीय