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परिशिष्ट

सरकारसे भी सन्तोष न हो सके तो फिर भारत-सरकारके पास मामला ले जानेका है। यदि भारत सरकारके सामने जानेसे भी बात न बने तो उनका विचार अन्तिम उपायके रूपमें भारतके लोकमतको जगानेका है।

अन्तमें उन्होंने पूछा कि उनको अपना प्रतिवेदन किसके नाम सम्बोधित करना चाहिए――कलक्टर या कमिश्नर या स्थानीय सरकारके नाम ? मैंने कहा कि सबसे अच्छा तो यही रहेगा कि उनका प्रतिवेदन सरकारके नाम सम्बोधित हो, क्योंकि उस स्थितिमें कलक्टर या कमिश्नरको यह दुविधा नहीं रहेगी कि उसे आगे बढ़ानेसे पहले उनको प्रतिवेदनपर चर्चा करना जरूरी है या नहीं। सौजन्यके तौरपर उनको उसकी एक प्रति स्थानीय अधिकारियोंको भेज देनी चाहिए और सरकार यदि जरूरी समझेगी तो उनकी राय या जो आवश्यक लगे वह सूचना माँग लेगी। मैंने कहा कि एक अफवाह थी कि वे [श्री गांधी] मुजफ्फरपुरमें भी वही करना चाहते हैं जो उन्होंने चम्पारनमें किया था। इसपर उन्होंने कहा कि फिलहाल उनकी वैसी कोई मंशा नहीं थी, हालांकि वह भारतके सम्बन्धमें अपनी सामान्य जानकारी बढ़ानेके लिए उस प्रान्तके अन्य स्थानोंका भी दौरा कर सकते हैं। मैंने गयाके दक्षिणवर्ती और हजारीबागके समीपवर्ती इलाकों में जानेका उनसे विशेष आग्रह किया। मैंने बताया कि वहाँके किसानों की जो दशा है उसकी तुलनामें वे पायेंगे कि चम्पारनकी रैयत अधिक स्वतन्त्र और साहसी है। दो घंटोंकी अपनी वार्ताकी समाप्ति करते-करते हमने औपिनिवेशिक प्रवासके सम्बन्धमें बड़ी दिलचस्प बातें कीं, परन्तु इस फाइलसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, संख्या ७१, पृष्ठ १२१-४।
 

परिशिष्ट ६

गांधीजी द्वारा दर्ज किये गये किसानोंके बयान

मई १९, १९१७

(क)

मौजा चेलाभर टोला राजकुमार, ढोकरहा कोठीका हीरा राय वल्द दुर्गा राय।

मेरी उम्र करीब ५० साल है, मेरी स्त्री जीवित है। मेरे एक पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं। मेरे पास चेलाभरमें ५ बीघे और बेलवा कोठीमें १।। बीघा जमीन है। करीब २॥ कट्ठे जिरात जमीन मुझपर थोपी गई है। मैंने श्री गांधीके जरिये उसे वापस कर देनेकी बात कहलवाई थी। कल सुबह लगभग १० बजे श्री हॉल्टम मेरे घरके पास आये थे। उनको देखकर मैं उनके पास गया। वे घोड़ेपर सवार थे। पटवारी रामलगन लाल और तहसीलदार अमलासिंह और तीन कारिन्दे उनके साथ थे। वहाँ कई लोग इकट्ठे