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बापू
गुजराती पत्र (एस० एन० ७६८२) की फोटो- नकलसे ।
१७७. देवी चेतावनी
मनुष्य एक बार भूल करे तो उसे क्षमा कर दिया जाता है, दो बार करे तो भी उदारमना उसे क्षमा कर देते हैं, लेकिन यदि तीसरी बार भी वह वैसी ही भूल करे तो ? तब तो उसे बरखास्त करने के अलावा और कुछ किया ही क्या जा सकता है ?
एक बार जो धोखा खाता है उसे हम सीधा-सादा व्यक्ति मानते हैं, दो बार जो धोखा खाये वह भोला कहलाता है, लेकिन जो तीन बार धोखा खाता है उसे मूर्खके सिवा हम और क्या कह सकते हैं ?
बारडोलीमें कानूनकी सविनय अवज्ञा करनेकी हमारी योजना स्वप्न हो गई । जो मुहूर्त हमने आन्दोलन शुरू करने के लिए नियत किया था ईश्वरकी इच्छा उसी मुहूर्तमें आन्दोलनको बन्द कर देने की थी । इसमें तो आश्चर्यकी कोई बात नहीं । जब राम-जैसे महापुरुषके राज्याभिषेककी घड़ी वनवासकी घड़ी बन गई तब बारडोलीकी तो बिसात ही क्या है? इसी तरह आज सच जान पड़नेवाली चीजें कल जब स्वप्नवत् लगेंगी तभी हमें स्वराज्य के सही अर्थकी उपलब्धि होगी। फिलहाल तो मुझे एक ही अर्थ सही जान पड़ता है । स्वराज्य प्राप्त करनेका सच्चा प्रयत्न ही स्वराज्य है । स्वराज्य तो जैसे-जैसे हम उसके पीछे भागेंगे वैसे-वैसे दूर प्रतीत होगा ।
समस्त आदर्शोंपर यही बात लागू होती है । मनुष्य जैसे-जैसे सच्चा बनता जाता है वैसे-वैसे सत्य उससे दूर भागता है क्योंकि वह समझ जाता है कि उसने जल्दी में जिसे सत्य मान लिया था वह तो वस्तुतः असत्य था ।
अतएव सत्यका आचरण करनेवाला सदाचारी मनुष्य हमेशा नम्र होता है, अपने दोषोंको वह निरन्तर अधिकाधिक समझता जाता है । ब्रह्मचारीसे ब्रह्मचर्य दूर भागता चला जाता है, क्योंकि प्रयत्नशील ब्रह्मचारी देखता है कि उसके अन्तरतममें बहुत अधिक विषय- लालसा विद्यमान है । अपने स्थूल ब्रह्मचर्यं से उसे सन्तोष नहीं होता । मोक्षार्थीसे भी मोक्ष दूर भागता जाता है । इसीसे महान् 'नेति' शब्दकी खोज हुई। प्राचीन कालमें अनेक महान् ऋषि मोक्ष - आत्मा -को ढूंढ़ने के लिए निकले। इसकी खोज में वे अनेक घाटियोंमें उतरे, अनेक पहाड़ोंपर चढ़े, बहुत सारी कँटीली झाड़ियोंको उन्होंने पार किया और अन्तमें उन्हें मालूम हुआ : "यह नहीं है"। कौन जाने उनमें से कितनोंने मोक्षकी झाँकी देखी होगी, तथापि हम इतना तो जानते ही हैं कि वे ऐसे पारखी थे, इतने चतुर थे कि वे छले नहीं गये ।