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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पर श्री स्पेंडरके ये विचार चाहे वातावरणके सम्मोहक प्रभावके कारण बने हों अथवा यह उनके अपने स्वतन्त्र विचार हों, आइये, हम उनपर विचार करें। रंगभेद विधेयकका लक्ष्य मनुष्य है; कोई साधन या कार्य नहीं। स्वदेशी केवल कुछ साधनों और कार्योंके विरुद्ध है। रंगभेद कानून बिना विचार किये ही मनुष्यकी जाति अथवा रंगका विरोध करता है। स्वदेशीमें ऐसा कोई भेदभाव नहीं है। रंगभेद कानूनके पक्षपाती आवश्यकता पड़नेपर अपनी इच्छाको बलपूर्वक भी पूर्ण कर लेंगे। स्वदेशी हर प्रकारके बलप्रयोग का— मानसिक बलप्रयोगका भी— तिरस्कार करता है। रंगभेद कानूनका आधार विवेक नहीं है। खद्दरके रूपमें स्वदेशी एक वैज्ञानिक सूत्र है जिसको विवेक- बुद्धि प्रत्येक पगपर पुष्ट करती है। रंगभेदके अनुसार प्रत्येक भारतवासी चाहे वह कितना ही शिक्षित क्यों न हो और चाहे वह रहन-सहनमें पूरा पश्चिमी मनुष्य जैसा क्यों न हो गया हो, तो भी दक्षिण आफ्रिका निवासियोंके विचारमें वह वहाँ रहने देने योग्य नहीं है। रंगभेद कानूनका उद्देश्य ही हिंसापूर्ण है क्योंकि वह वहाँके आदि निवासियोंको और एशियाके नवागत लोगोंको बराबर अशिक्षित मजदूर ही बनाये रखना चाहता है; और चाहता है कि वे इस स्थितिसे कभी ऊपर न निकलने पायें। रंगभेद सभ्यताके नामपर और सभ्यताकी रक्षाके नामपर और भी अधिक विषम रीतिसे वहीं करना चाहता है जो हिन्दुओंने हिन्दू धर्मके नामपर उन लोगों के साथ किया है जिनको वे अछूत कहते हैं। पर उल्लेखनीय बात यह है कि अस्पृश्यता— इसके विरुद्ध जो भी कहा जाये— बड़ी तेजीसे हिन्दुस्तानसे उठती जा रही है। जो लोग अस्पृश्यता हटाने में लगे हैं वही लोग बड़े उत्साहके साथ चरखेको भी सर्वव्यापी बनानेका प्रचार कर रहे हैं। अस्पृश्यताको बुराई मान लिया है। पर रंग-भेदको दक्षिण आफ्रिकामें धर्मका दर्जा दिया जा रहा है। रंग-भेद विधेयक बेगुनाह स्त्री-पुरुषोंको अकारण ही नुकसान पहुँचाते हैं और उनका धन हरण करते हैं। स्वदेशीका उद्देश्य एक भी प्राणीको नुकसान पहुँचाना नहीं है। यह इस देशके सर्वाधिक गरीब लोगोंको वह चीज लौटाना चाहता है जो उनसे जबर्दस्ती छीन ली गयी है। रंगभेद विधेयक लोगोंको पृथक् करना चाहता है। स्वदेशीमें इस प्रकार किसीको पृथक् करनेका भाव नहीं है। स्वदेशीकी इस विचारधाराके साथ कोई भी सहानुभूति नहीं है कि पूर्व और पश्चिम कभी मिल नहीं सकते। स्वदेशीका आन्दोलन सभी विदेशी अथवा यूरोपीय वस्तुओंका बहिष्कार नहीं करता; न तो वह मशीनों द्वारा बनी हुई सभी वस्तुओंका ही बहिष्कार चाहता है, और न वह देशमें बनी सभी वस्तुओंको वरेण्य मानता है। स्वदेशी ऐसी सभी विदेशी वस्तुओंकी आमदका स्वागत करता है जिनको हम हिन्दुस्तान में तैयार नहीं कर सकते अथवा नहीं करना चाहते और जिनसे हिन्दुस्तानके लोगोंको लाभ है। उदाहरणार्थ स्वदेशी श्रेष्ठ साहित्यकी सभी विदेशी पुस्तकोंको, विदेशी घड़ियोंको, विदेशी सुइयों, सिलाईकी विदेशी मशीनों और विदेशी आलपिनोंकी आमदको स्वीकार करता है। स्वदेशी सभी मादक वस्तुओंका— चाहे वह भारतमें भी बनी हों— वर्जन करता है। स्वदेशी आन्दोलन सभी प्रकारके विदेशी कपड़ेका और भारतकी मिलोंमें भी बने कपड़ोंका बहिष्कार करके चरखे और खद्दरके प्रसारपर ही अपनी सारी शक्ति लगाता