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१०७. पत्र : तेहमीना खम्भाताको
आश्रम
साबरमती
मंगलवार [६ जुलाई, १९२६][१]
प्रिय बहन,
तुम्हारा पत्र मिला। मैं इसकी बाट ही जोह रहा था। मैं जब-जब श्रीमती एडीकी[२] पुस्तक पढ़ने बैठता हूँ तब-तब मुझे भाई खम्भाता याद आते हैं। उनकी तन्दुरुस्ती सुधर रही है, यह जानकर मुझे बहुत खुशी हुई। जिस खुराक अथवा दवासे फायदा हो उससे ऊबना क्यों चाहिए? मैं श्रीमती एडीकी पुस्तकके बारेमें अपनी सम्मति देने की बात बिलकुल नहीं भूला। लेकिन चूंकि इसकी कोई जल्दी नहीं है, इस वजहसे अन्य कामोंसे जितना वक्त बचता है उतना इस पुस्तकको पढ़नेमें लगाता हूँ।
बापूके आशीर्वाद
श्रीमती तेहमीना बहरामजी खम्भाता
२७५, हॉर्नबी रोड
फोर्ट
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४३६२ ) की नकलसे।
सौजन्य : तेहमीना खम्भाता
सौजन्य : तेहमीना खम्भाता
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