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पत्र : च० राजगोपालाचारीको

मैंने आपका शास्त्रीजीको[१] लिखा पत्र पढ़ा। मुझे जितना अच्छा आपका मेरे नाम लिखा गया पत्र लगा, उतना अच्छा शास्त्रीजीको लिखा गया पत्र नहीं लगा। मुझे लगता है कि उनके संकट-कालमें उनकी याचनाके उत्तरमें आपने उन्हें जो पत्र लिखा, आप उसे यदि न लिखते तो अच्छा होता। आपने मुझे जो चेक भेजा था वह मैंने शास्त्रीजीको भेज दिया था; परन्तु उससे सम्बन्धित पत्रकी जो प्रति आपने मुझे भेजी थी मैंने उसके विषय में उन्हें कुछ नहीं लिखा था। समाजके[२] बारेमें आपने जो विचार व्यक्त किये हैं, यदि उन्हें मैं पहले जानता तो मैं आपको सहायता देनेके लिए न लिखता। ऐसे विचार होते हुए भी आपने जो दान दिया है, मैं उसे महत्वपूर्ण समझता हूँ, और इसी कारण आपका चेक शास्त्रीजीको भेजनेमें मुझे जरा भी झिझक नहीं हुई। मैं तो यह भी समझता हूँ कि आपने शास्त्रीजीको जो पत्र लिखा है वह भी शुभ हेतुसे ही लिखा है।

श्री अम्बालाल साराभाई

माल्डन हाउस
मैरीन लाइन्स

बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १९९२८) को माइक्रोफिल्मसे।

१४१. पत्र : च० राजगोपालाचारीको

आश्रम
साबरमती
१२ जुलाई, १९२६

आपका पत्र मिला। मुसीबतका सामना तो आपको करना ही पड़ेगा। लेकिन तिरुच्चङगोडमें आपकी मौजूदगी और वहाँ पानीकी कमी होनेके बीच तो उतना ही सम्बन्ध है जितना कि अन्य किसी नवागन्तुकके उस जिलेमें आने और बीच हो सकता है। जो आपपर प्रतिद्वन्द्विताका आरोप लगाते हैं वे आपकी उपस्थितिको अत्यधिक महत्त्व देते हैं; आप उसके पात्र नहीं हैं। आपके अभिमानसे फूल उठनेका ज्यादा खतरा नहीं है; इसलिए उन भले आदमियोंको, जो आपपर ऐसा दोष लगाते हैं, अपनी धारणापर प्रसन्न हो लेने दीजिए।

फिनलैंड जानेके विचारने दम तोड़ दिया है और अब वह दफना भी दिया गया है। डॉ० दलालको सन्देह है कि देवदासके अण्डकोषमें वृद्धि हो गई है। इसके लिए अगर ऑपरेशन करना भी पड़ा तो ऑपरेशन छोटा ही होगा। मुझे इसके

  1. वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री।
  2. भारत सेवक समाज।