मैं आपके स्वास्थ्यकी बात समझ गया। आप अपने आहारके प्रयोगोंमें एक प्रयोग और कर देखें। यदि आपको यह भरोसा हो कि स्वस्थ गाय या भैंसका दूध साफ तरीकेसे दुहा गया है तो आप उसे ताजा पीयें। इसका असर तो आप स्वयं अनुभवसे देख लेंगे। यदि असर अच्छा हो तो उसे जारी रखें। वैद्यका कहना है कि धारोष्ण दूधसे प्रथम कोटिके विटामिन मिलते हैं। ये तत्व दूधको गर्म करनेसे नष्टहो जाते हैं। ताजे दूधसे मिलनेवाले ये विटामिन आवश्यक माने जाते हैं। डाक्टर तलवलकरने इस विषयका पर्याप्त अध्ययन किया है। आवश्यकता हो तो आप उनसे पत्र-व्यवहार करें। मेरा स्वास्थ्य बिगड़ा तो तनिक भी नहीं है। मैंने तो केवल फलोंपर रहनेका प्रयोग किया था, उससे मेरा वजन घटा; अतः में बादमें फिर दूधपर आ गया। फलोंमें बीज तो अवश्य ही नहीं थे।
आप किन तीन कहानियोंकी बात कह रहे हैं, सो मुझे तो बिलकुल याद नहीं आतीं। कुछ याद दिलायें तो शायद याद हो जाये और तब मैं उन्हें पढ़नेका प्रयत्न करूँगा; अन्यथा अभी न तो मुझमें कुछ पढ़नेका साहस है और न उत्साह।
स्वावलम्बन पाठशाला
गुजराती प्रति (एस० एन० १२२३६) की फोटो-नकलसे।
२७९. पत्र : रमणीयराम गो० त्रिपाठीको
आश्रम
साबरमती
बुधवार, आषाढ़ बदी ११, ४ अगस्त, १९२६
आपका पत्र मिला। मैं भाई विभाकरके सम्बन्धमें इतना कम जानता हूँ कि उनका कोई भी उपयोगी संस्मरण आपको नहीं भेज सकता। उनके विनोदी स्वभावके अतिरिक्त मुझे उनकी और कोई बात याद नहीं है।
मेरा स्वास्थ्य ठीक है। अभी तो ऐसा कोई प्रसंग दिखाई नहीं देता जिसके कारण मुझे २० दिसम्बरसे पहले अहमदाबादसे बाहर जाना पड़े। परन्तु यदि दो-एक दिनके लिए मेरा बम्बईमें रहना हो तो आप मुझसे पूछकर मण्डलके लिए मेरे समयका उपयोग अवश्य करें। मैंने विद्यापीठमें 'बाइबिल' पढ़ाना शुरू नहीं किया है। अखबार-वाले मेरा पीछा नहीं छोड़ते तब मैं क्या करूँ? मेरा कोई भी काम शान्तिसे नहीं हो पाता। और यदि कहीं मेरी शान्ति बाह्य परिस्थितियोंपर निर्भर होती तो लोग मुझे कभीका पागल बना देते। मैंने विद्यार्थियोंसे पूछा था कि वे सप्ताहमें मेरे एक घण्टेका उपयोग किस ढंगसे करना चाहते हैं। उन्होंने मुझसे हर शनिवारको प्रश्न