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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनके प्रति भारी प्रेम प्रकट किया था तथा उनकी स्मृतिको बनाये रखने के लिए अन्त्यज सेवाके लिए उनके नामसे एक शिक्षा-वृत्ति देनेके लिए १,५०० रुपये इकट्ठे किये थे। ये दोनों बातें उनकी राष्ट्रीय शिक्षा सम्बन्धी भावनाके ठोस प्रमाण हैं।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ८-८-१९२६

३०३ पत्र : एस्थर मेननको

आश्रम
साबरमती
८ अगस्त, १९२६

रानी बिटिया,

तुम्हारा पत्र मिला। कमसे-कम पत्रका सिरनामा तो मैंने अपने हाथसे ही लिखा है। फिलहाल इतना ही काफी है। टाइपकी मशीनको मैं भी कम नापसन्द नहीं करता। उसे देखकर मनमें ग्लानि होती है, लेकिन इसके बावजूद में उसे सहन करता हूँ, वैसे ही जैसे मैं उन कई चीजोंको सहन करता हूँ जिनसे कोई स्थायी हानि नहीं होती। यदि कोई मेरी टाइपकी मशीन ले ले तो मुझे जरा भी दुःख नहीं होगा, लेकिन जबतक वह मेरे पास है, मैं उसका इस्तेमाल करता हूँ और यह भी मानता हूँ कि उससे अधिक उपयोगी कामके लिए समयकी कुछ बचत तो होती ही है। पर हो सकता है कि मेरी यह मान्यता भी बिलकुल ही गलत हो। अपने आसपासके वातावरणसे ऊपर उठना मुश्किल ही होता है।

एन मैरी स्पष्ट ही बहुत बड़ा और अच्छा काम कर रही हैं। पूर्वग्रह बड़ी कठिनाईसे जाते हैं। लेकिन जहाँ सत्यनिष्ठा होती है वहाँ कठिनसे कठिन पूर्वग्रह सहज ही मिट जाते हैं।

मेनन अपना अस्पताल खोल लेंगे तो बहुत अच्छी बात होगी। मीराबहन आध्यात्मिक अनुभवकी प्राप्तिके लिए जो सात दिनका उपवास करना चाहती थीं वह आज प्रातः पूरा हो गया और उसे उन्होंने फलोंका रस लेकर समाप्त कर दिया। उपवास बड़ी अच्छी तरह चला, हालाँकि सात दिनमें उसका वजन दस पौंड घटा है। लेकिन वैसे यह कोई खास बात नहीं।

वाइसरायसे मुझे अधिक आशा नहीं है। वे सदाशयी भले ही हों; केवल सदाशयताका तो कोई मूल्य नहीं होता। तुम्हारा यह खयाल बहुत ठीक है और मैं भी यही कहता हूँ कि हमें मुक्ति देर-सबेर, किन्तु मिलेगी अपने ही प्रयत्नोंसे।

तुम्हारा,
बापू

माई डियर चाइल्ड तथा नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया में सुरक्षित अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकलसे।