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पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

मेरा अच्छा खासा परिचय है। इसलिए अपनी ओरसे जो-कुछ करना उचित होगा वह तो मैं करूँगा ही। मेरे वहाँ आनेसे कोई विशेष लाभ होगा, ऐसा मुझे नहीं दीख पड़ रहा है। मैंने यह निर्णय तटस्थ भावसे विचार करनेपर किया है। परन्तु आप या सर पुरुषोत्तमदास किसी विशेष कारणसे यह मानें कि मेरा वहाँ आना जरूरी है तो में अवश्य आऊँगा।

सर हेनरी लॉरेन्सके साथ मण्डलके विषयमें मेरी कोई बात नहीं हुई है। हाँ, खेती सम्बन्धी आयोगके विषयमें अवश्य हुई थी।

मोहनदासके वन्देमातरम्

भाईश्री लालजी नारणजी

एवर्ट हाउस
टेमेरिन्ड लेन

फोर्ट, बम्बई

गुजराती पत्र (एस० एन० १२२६७) की फोटो-नकलसे।

३९१. पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

आश्रम
साबरमती
श्रावण बदी अमावस्या, १९८२ [७ सितम्बर, १९२६]

आदरणीय रेवाशंकरभाई,

आपका पत्र मिल गया। सेठ लालजी नारणजीने मुझे सीधे पत्र लिखा है। मैंने उन्हें जवाबमें लिख भेजा है कि मेरे बम्बई जानेसे कुछ लाभ हो सकता है, मुझे ऐसा नहीं लगता। यदि मेरा उनसे मिलना जरूरी हो जायेगा तो मिलनेकी विशेष व्यवस्था ही करनी होगी। उसका मैं प्रबन्ध कर दूंगा। और यदि वे लोग मुझसे मिलना चाहेंगे तो चाहे जहाँ मिल सकते हैं। फिर भी इसका निर्णय मैंने लालजी सेठ, सर पुरुषोत्तमदास आदिपर छोड़ा है। यदि उनका यह विचार हो कि मुझे जाना ही चाहिए तो मैं जाऊँगा। बेहतर यही होगा कि जल्दबाजीमें कोई फैसला न किया जाये।

चि० जमनादास कई महीनेसे वहाँ घबरा रहा है परन्तु मेरे आश्वासन देते रहनेके फलस्वरूप वह काम करता रहा । अन्तमें जब उसके पत्रोंपर मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया तो उसने अपनी मंशा पूरी करनेके खयालसे यह कदम उठा लिया। उसे मैंने बुलवाया था और वह आ गया है। उसने काम छोड़नेके तीन कारण बताये हैं।

(१) उसकी अपनी यह धारणा कि वह शिक्षक बननेके योग्य नहीं है;
(२) उसके गलेमें दर्द रहता है जिससे बोलनेमें कठिनाई होती है;