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स्वयंसेवकोंका धर्म

जिस प्रकार एक घड़ीसाज अच्छी कमानी लगानेके हेतु पुरानी और रद्दी कमानी फेंक देता है।

सामुदायिक प्रार्थना बड़ी बलवती वस्तु है। इसमें हम जो कुछ प्रायः अकेले नहीं करते, उसे सबके साथ करते हैं। लड़कोंको विश्वासकी आवश्यकता नहीं है। अगर वे महज अनुशासनके पालनार्थ ही सच्चे दिलसे प्रार्थनामें सम्मिलित हों, तो उनको प्रफुल्लताका अनुभव होगा। लेकिन अनेक विद्यार्थी प्रफुल्लता अनुभव नहीं भी करते और प्रार्थनाके समय, शरारत भी करते हैं। लेकिन तिसपर भी उनपर अप्रकट प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। ऐसे लड़के भी होते हैं जो अपने प्रारम्भकालमें प्रार्थनामें केवल उपहास करनेके लिए ही शरीक होते हैं; लेकिन बादमें सामुदायिक प्रार्थनाकी विशिष्टतामें अटल विश्वास रखनेवाले बन जाते हैं। यह बात सभीके अनुभवमें आई होगी कि जिनमें दृढ़ विश्वास नहीं होता, वे सामुदायिक प्रार्थनाका सहारा लेते हैं। वे सब लोग जो गिरजाघरों, मन्दिरों और मस्जिदोंमें इकट्ठे होते हैं, न तो कोरे धर्मोपहासी होते हैं और न पाखण्डी। वे ईमानदार लोग होते हैं। उनके लिए तो सामुदायिक प्रार्थना नित्य स्नानकी भाँति एक आवश्यक नित्य-कर्म है। ये प्रार्थना-स्थान कोरे अन्धविश्वासके सूचक ऐसे स्थान नहीं हैं जिन्हें जल्दीसे-जल्दी नेस्तनाबूद कर दिया जाना चाहिए। वे आघात सहते रहकर भी अबतक मौजूद हैं और अनन्त कालतक बने रहेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-९-१९२६

४७२. स्वयंसेवकोंका धर्म

यह बताते हुए कि इस अनेक धर्मोवाले देशमें एक स्वयंसेवकके लिए सर्वमान्य आचार ढूँढ़ना कठिन है, एक पत्रलेखक स्वयंसेवकके धर्मका इस प्रकार प्रवाहपूर्ण वर्णन करता हैं:[१]

इसमें से शब्दाडम्बर निकाल दें तो सार यह निकलता है कि यह सत्यधर्म हिन्दुत्व, इस्लाम, ईसाइयत आदि अंगभूत हिस्सोंमें विभक्त हो जाता है, क्योंकि अत्यन्त ईमानदार तथा शुद्धचित्त हिन्दू, मुसलमान तथा ईसाई सत्यको क्रमशः हिन्दुत्व, इस्लाम तथा ईसाइयतके रूपमें ही देखेंगे, क्योंकि वे उन्हीं धर्मोमें विश्वास रखते हैं।

अतः यह जानते हुए कि हम सभी कभी एक ही तरहसे नहीं सोचते और सदा सत्यके एक खण्डको ही और वह भी विभिन्न दृष्टिकोणोंसे देखते हैं, पारस्परिक सहिष्णुता आचरणका सर्वोत्तम नियम है। सबकी अन्तःकरणकी पुकार एक नहीं होती। अतः यद्यपि वह व्यक्तिगत जीवनके लिए एक अच्छा पथप्रदर्शक है, फिर भी अपने

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने कहा था कि स्वयंसेवकका धर्म सत्य—जो सब धर्मोंका सार है होना चाहिए और उसे साम्प्रदायिकतासे दूर रहना चाहिए।