झूठा दिखावा, आत्मप्रवंचना तथा रूढ़ियोंसे चिपके रहना—सर्वत्र इन्हींका बोल-बाला है। शिक्षाके क्षेत्रमें देशके बच्चोंके भावी विकासका बीज निहित है। उसमें सत्य तथा अतिसाहसिक प्रयोगोंके अनुसार चलनेके लिए बड़ी ही प्रामाणिकता और निर्भयताकी आवश्यकता है। अवश्य ही इन प्रयोगोंको ठोस होना चाहिए और उन्हें गम्भीर विचारपर आधारित होना चाहिए तथा उनका अभिषेक त्यागपूर्ण जीवनसे किया जाना चाहिए। जिसके मनमें आये वही शिक्षामें इस प्रकारके प्रयोग नहीं कर सकता। शिक्षाका यह क्षेत्र ठोस प्रयोगोंके लिए काफी विस्तृत होनेके साथ-साथ बिना समझे-बूझे जल्दीमें कुछ कर बैठने की दृष्टिसे वैसा ही खतरनाक भी है जैसा गढे घनकी खोजमें पागल घूमनेवाले लोगोंका काम।
यंग इंडिया, ३०-९-१९२६
४९६. सार्वजनीन घरेलू धन्धा
बंगाल प्रशासनिक सेवाके सदस्य बाबू विजयबिहारी मुकर्जीने बंगालके घरेलू धन्धोंपर एक पुस्तिका लिखी है। इसपर उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालयका वीरेश्वर मित्र स्वर्ण पदक भी दिया गया है। बाबू विजयबिहारीके नतीजे तो निर्जीव हैं, लेकिन उनके दिये हुए तथ्य तो देशके सभी हितचिन्तकोंके लिए भली-भाँति विचार करने योग्य हैं। उनका महत्त्व और भी अधिक इसलिए है कि जो बात बंगालपर लागू होती है, वही बात प्रायः सारे हिन्दुस्तानपर भी लागू होती है।