पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/५७

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२३. पत्र: ए० एस० डेविडको

आश्रम
साबरमती
१९ जून, १९२६

प्रिय मित्र, आपका पत्र[१] मिला। मैं आपका आशय समझ गया हूँ, किन्तु खेदके साथ कहना पड़ता है कि आपका यह सबसे हालका पत्र तो मुझे और भी कम पसन्द आया है। फिर भी मैं बहसमें नहीं पड़ना चाहता। मैं फिर अपनी पिछली बारकी सलाह ही दोहराता हूँ, आप कोई भी कदम उठाने से पहले यहाँ खुद आकर सब चीजें स्वयं देख लें।

श्री ए० एस० डेविड
७१, दिलकुशा, लखनऊ

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९४४) की फोटो-नकलसे।

२४. पत्र: एस० रामनाथनको

आश्रम
साबरमती
१९ जून, १९२६

प्रिय रामनाथन,

मगनलालने आपके नाम जो पत्र लिखा था वह मैंने पढ़ लिया है। तमिलनाडकी खादी अब घटिया किस्मकी बनने लगी है। इस सम्बन्धमें मेरे पास बड़ी शिकायतें आ रही है। खादी घटिया किस्मकी हरगिज न बनने पाये, इसकी हर हालत में व्यवस्था की जानी चाहिए। आजकल जो खादी आपके यहाँ तैयार की जा रही है, उसके बारेमें बहुत से लोगोंने जो अपनी राय व्यक्त की है उसे अगर आप ठीक मानते हैं तो यह आवश्यक है कि आप इस खामीको स्वीकार करें और उसका स्पष्टीकरण करें। इस सम्बन्धमें आई हुई शिकायतके बारेमें मैंने श्री जेराजाणीको[२] पत्र लिखा था और यह कहा था कि इस सम्बन्धमें मेरा पथप्रदर्शन करें। उन्होंने जो उत्तर मुझे भेजा है उसमें से आपके लाभार्थ एक अनुच्छेद यहाँ दे रहा हूँ। वे कहते हैं:

  1. १. ए० एस० डेविडने १० जूनको लिखे अपने पत्र में रोटीके लिये किये जानेवाले शरीर-श्रमके सिद्धान्त में अपनी दिलचस्पी और आश्रम में शामिल होनेको इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने मिशनरी कार्येसे नाता तोड़नेकी अपनी मंशा जाहिर करते हुए गांधीजीसे मार्गदर्शन और सहायता मांगी थी। (एस०एन० १०९१७)। देखिए खण्ड ३०, पृष्ठ ५७२-७३ भी
  2. २. विठ्ठलदास जेराजाणी।