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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चर्खा संघ-जैसी संस्थाका काम तो देशी रंगोंके बारेमें ही अनुसंधान करनेका है। वह ज्यादासे-ज्यादा इतना ही कर सकती है कि विलायती रंगोंका बहिष्कार न करे।

इस बातमें मेरी राय आपसे मिलती है कि हाथकताईका प्रचार और भी व्यापक हो, इसके लिए यह आवश्यक है कि काता जानेवाला सूत आजकी बनिस्बत अधिक मजबूत और इकसार हो। मेरा खयाल यह है कि हाथकताईकी तुलनामें हाथ बुनाईकी कला करोड़ों लोगों द्वारा नहीं अपनाई जा सकती। ऐसा चाहे इसी कारण हो कि यह करोड़ों लोगोंको सहज सुलभ नहीं है। इसके सिवा हाथबुनाई इतनी जटिल है कि करोड़ों लोग उसे सीख भी नहीं सकते। हाथकताई ही एक ऐसी चीज है जिसे प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है। इसलिए हमें अपना ध्यान हाथकताई— केवल हाथकताई—पर ही केन्द्रित करना चाहिए।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११९३) से।

४५. पत्र : भूपेन्द्रनारायण सेनको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। यह जानकर कि आप आरामबाग वापस जा रहे हैं, प्रसन्नता हुई। आपमें मलेरियाके प्रतिरोधकी शक्ति आनी चाहिए। तारिणी बाबूके त्यागपत्रके बारेमें मुझे कोई जानकारी नहीं है। मैं पूछताछ करूंगा। पर मान लो कि वे निरीक्षकका काम करना स्वीकार कर लें और आप कोई दूसरा काम करें, तो फिर आरामबागमें मुख्य काम कौन करेगा? यदि मात्र निर्वाहकी ही बात हो तो मुझे तो जगह-जगह भटकते फिरना ही गलत मालूम पड़ता है। नहीं तो आप खादी प्रतिष्ठानमें शामिल होकर उसीकी अधीनतामें आरामबागमें रहकर काम क्यों न करें? यदि आप खादी-प्रतिष्ठानको महत्त्व न दें, तो फिर अभय आश्रम में शामिल क्यों न हो जायें? यदि आप चिकित्सकका काम सीखना चाहते हैं, तो फिर सवाल यह है कि आरामबागमें कौन काम करेगा? मैं तो यही ठीक समझता हूँ कि आपको वहीं रहना चाहिए जहाँ आपका काम है; नहीं तो आप कोई प्रगति न कर सकेंगे। हो सकता है कि आपने अपने पत्रमें जो कुछ कहा है मैं उसका पूरा-पूरा अर्थ न समझ पाया होऊँ। ऐसी हालत में आप मुझे पूरी बात समझा दें।

आशा है कि प्रफुल्लकी आँखें अब अच्छी हो गई होंगी। मुझे इसमें किंचित्भी सन्देह नहीं कि एक ऐसा समय आ रहा है जब देशवासी पूरी तरह समझ जायेंगे कि उनके सम्मुख करने योग्य कार्य केवल रचनात्मक कार्य ही है। इससे