ठोस कार्यका एक असीम क्षेत्र हमारे सामने खुल जाता है। इस रास्तेसे चलकर ही हम कमसे-कम समयमें स्वराज्य ले सकते हैं। फिर इस बहससे कोई लाभ नहीं कि यह स्वराज्य आज मिलेगा या कल।
मुझे इस वर्ष अवश्य ही साबरमतीसे बाहर जानेके किसी प्रलोभनमें नहीं फँसना है। अगले वर्ष तो मेरे लिए ईश्वर कोई और मार्ग बना देगा।
हृदयसे आपका,
२३, नन्दराम सेन स्ट्रीट
हाटखोला डा०
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १११९६) की माइक्रोफिल्मसे।
४६. पत्र : चम्पाबहन मेहताको
आश्रम
साबरमती
मंगलवार,[१] ज्येष्ठ सुदी ११, २२ जून, १९२६
तुम्हारा पत्र मिला। बच्चोंके स्वास्थ्यका हालचाल बहुत दिनोंसे नहीं मिला था। भाई मणिलाल अहमदाबाद ही है। उन्होंने भी तुम्हारा पत्र मिलनेकी बात कही थी। में यह पत्र तो, तुमसे जो अपेक्षा करता हूँ, उसके बारेमें लिख रहा हूँ। मैंने सुना है कि चि० रतिलाल बहुत खर्च करता है। अब उसने मुझसे रुपये मँगाये हैं। मैंने उसे लिखा है कि डाक्टरकी अनुमतिके बिना रुपये नहीं दिये जा सकते। मैं उसे जो पत्र लिखता हूँ वे तुम्हें पढ़नेके लिए मिलते हैं अथवा नहीं; मैं नहीं जानता; मिलते ही होंगे, मैं ऐसा माने लेता हूँ। मैं तुमसे यह अपेक्षा करता हूँ कि तुम उसे फिजूल खर्च बिलकुल नहीं करने दोगी, रुपये पैसेका पूरा हिसाब रखोगी या रखवाओगी। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम अपने चरित्रवल और संयमसे चि० रतिलालपर इतना नियन्त्रण कर लोगी कि जिससे वह अपने समस्त दोषोंको सुधार सके। यह कार्य सुशील स्त्रीके सामर्थ्यके बाहर नहीं है, यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। रतिलालके मनकी दुर्बलताको तुम्हारे अलावा और कोई दूर नहीं कर सकता और यदि तुम चाहो तो दूर कर सकती हो। तुमसे मुझे ऐसी आशा बँधी है।
गुजराती प्रति (एस० एन० १९६२६) की माइक्रोफिल्मसे।