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९३. भाषण : स्त्रियोंकी सभा, कोयम्बटूर में

१६ अक्टूबर, १९२७

बहनो,

अगर आपने यह शोर बन्द नहीं किया तो मैं आपसे बातचीत नहीं कर सकता । आपने जो थैली मुझे दी उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । सिर्फ एक या दो बातें ही हैं, जिन्हें मैं आपको बताना चाहता हूँ। हम सब भारतमें रामराज्य चाहते हैं। यदि आप सीताके समान जीवन व्यतीत नहीं कर सकतीं तो भारतमें रामराज्य स्थापित नहीं हो सकता । सीता शरीर और मनसे पवित्र थीं। मैं समझता हूँ और मेरी यह राय है कि आपमें से बहुत-सी बल्कि ज्यादातर स्त्रियाँ विदेशी वस्त्र पहनकर अपने शरीरको मलिन करती है। सीतादेवी ऐसा नहीं करती थीं। एक क्षणके लिए भी ऐसा मत सोचिए कि सीतादेवीको नफीस विदेशी कपड़ोंकी कोई रुचि थी या वे अपने शरीरकी सजावटके लिए उन्हें विदेशसे मँगाती थी। इसके विपरीत हम जानते हैं कि सीतादेवीके समयमें स्वयं वे और समस्त भारतीय स्त्रियाँ कताई किया करती थीं और भारतीय पुरुषों द्वारा बुने हुए वस्त्र पहनती थीं। और यह बहुत अच्छी बात थी। हमारी प्राचीन पुस्तकोंमें इस बातके काफी प्रमाण हैं कि उस कालमें निरपवाद रूपसे सभी स्त्रियाँ अपने हाथसे सूत काता करती थीं तथा हम अपनी जरूरतका सारा कपड़ा स्वयं तैयार किया करते थे। ये पुस्तकें हमें बताती हैं कि उन दिनों भारतके गाँवों तथा शहरोंके लाखों लोग अच्छा खाते और अच्छा पहनते थे। लेकिन हमारी लाखों बहनें गाँवोंमें जब कि भूखों मर रही हैं, आप विदेशी साड़ियों- से अपने शरीर सँवारती हैं। मैं मानता हूँ कि इसके लिए पुरुष स्त्रियोंसे कुछ कम दोषी नहीं हैं। मुझे मालूम है कि विदेशी वस्त्र पहननेकी आदतकी शुरुआत भारतीय पुरुषोंने की। इसका फल यह हुआ है कि गाँवोंमें रहनेवाले पुरुष और स्त्री दिन-ब- दिन गरीब होते जा रहे हैं तथा गहन दुखमें डूबते जा रहे हैं। सीतादेवीकी तरह आप भी रोज-ब-रोज भारतके गरीब भाई-बहनोंके बारेमें सोचिए । जब आप उनके बारेमें सोचेंगी तो मुझे यकीन है आपको यह लगेगा कि उनके पवित्र हाथोंसे तैयार की हुई खादी पहनना आपका कर्त्तव्य है। मैं आपको एक चीज और बताऊँगा जो सीतादेवी किया करती थीं। उन्होंने किसी भी मनुष्यको अस्पृश्य नहीं माना । उन्होंने और महापुरुष रामने इच्छापूर्वक और कृतज्ञभावसे निषादराज, जो कि हमारी आजकी मिथ्या धारणाओंके अनुसार अस्पृश्य समझा जायेगा, की सेवा स्वीकार की थी । भगवान रामके महान भाई भरतको जब यह ज्ञात हुआ कि निषादराजने श्रद्धाके साथ रामकी सेवा की थी तो उन्होंने स्नेहपूर्वक उसका आलिंगन किया । ऋषियों और संन्यासियोंके राजा भरतको तो आप जानती ही हैं। लेकिन आज हम उन लोगोंको, जो हमारी सेवा करते हैं, हमारे खेत जोतते हैं और हमारे शौचालय साफ