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पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

यह चरखा जाँचनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई। हालाँकि यह मूल चरखेसे बेहतर है लेकिन केशू द्वारा बनाये गये चरखेकी तुलनामें कम उतरता है। मैं आजकल उसीका इस्तेमाल कर रहा हूँ । यह आपके भेजे चरखेसे कहीं ज्यादा मजबूत है। उसकी धुरी बक्सेसे बाहर नहीं निकली रहती। हत्या और लपेटनी धातुके बने हैं। तीलियाँ कहीं ज्यादा मजबूत हैं। हब (चक्रकी नाभि ) भी धातुकी बनी हुई है। उससे काफी काम लिया गया है और यद्यपि उसके उपयोगमें बहुत सावधानी भी नहीं बरती गई है किन्तु वह अभीतक एक बार भी बिगड़ा नहीं है। अपने चरखेमें और सुधार करने या प्रस्तुत नमूनेको अन्तिम रूपसे स्वीकार करने से पहले आपको केशूका चरखा देख लेना चाहिए। क्या बक्सेवाले चरखेकी आपके यहाँ बहुत माँग है ।

आपका स्वास्थ्य कैसा रहता है ? क्या हृदय अब भी तकलीफ देता है ?

आपने सूचना दी, उससे पहले ही मैं श्यामबाबूके बारेमें सुन चुका था। मैं चाहता हूँ कि वह अपने इस नये काममें लगे रह सकें तो अच्छा हो । क्या शरत्वाबू- को अपनी पत्नीकी सहमति मिली? उन्होंने काषाय तो धारण कर लिया अब और क्या करेंगे ? मुझे तो आपका संन्यास ज्यादा पसन्द है।

यह बहुत सम्भव है कि मुझे दिल्ली जाना पड़े और लंका-यात्रा कुछ दिनोंके लिए स्थगित करनी पड़े। मुझे आज या कलतक निश्चित रूपसे पता चल जायेगा ।

क्या तारिणी पहलेसे बेहतर है ? और लड़का कैसा है ?

मुझे अभय आश्रमके बारेमें पूरा विवरण मिल गया था । उससे लगता है कि उनकी तरफसे कोई हमला नहीं हुआ और नकाबपोश बल्लमचारियोंकी कहानी विल- कुल मनगढ़न्त है। इस प्रकारकी मनगढ़न्त बातें आज आम चीज हो गई हैं, उसी प्रकार जैसे युद्धके दौरान दोनों पक्षोंकी ओरसे मनगढ़न्त प्रचार आम था ।

सप्रेम,

बापू

[ पुनश्च : ]

यह कैप्टेन पेटावलका पत्र और संलग्न सामग्री है। यह अपने ढंगका पहला नहीं है बल्कि बहुतसे पत्रोंमें से एक है। मुझे याद है कि आपने उनकी संस्थाके बारेमें एक बार प्रतिकूल रिपोर्ट दी थी। अब वे डा० रायका प्रमाणपत्र लेकर आये हैं । इस बार मैंने उनसे कहा है कि वे आपसे मिलकर बात कर लें। उन्हें कुछ समय दे दीजिए, और अगर वे ठीक राहपर चल रहे हों तब तो ठीक है अन्यथा उन्हें उनकी गलती बता दीजिए।

बापू

अंग्रेजी (जी० एन० १५७८) की फोटो-नकलसे ।