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१४०. स्वयंको बदलनेकी आवश्यकता

लोकमान्यने हमें अपना सन्देश चार सीधे-सादे शब्दों में दिया था। लेकिन आज भी ऐसे लोग हैं जिन्हें इस सिद्धान्तमें शंका है कि स्वराज्य उनका जन्मसिद्ध अधिकार है -- उसी प्रकार जिस प्रकार कुछ लोग ईश्वरके अस्तित्वमें शंका करते हैं । अतः स्वराज्य आन्दोलन हमें इस बातकी प्रतीति करानेका आन्दोलन है कि स्वराज्य हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है। स्वयंको बदलनेकी आवश्यकताका स्मरण दिलानेवाली बहुत-सी चीजें हमारे बीच पहले ही मौजूद हैं, लेकिन नीलकी प्रतिमा सम्बन्धी सत्याग्रहपर मद्रास विधान परिषदमें हुई बहस मानो हमारी आँखमें अँगुली डालकर हमें इस आवश्यकताको याद दिलाती है। इस विक्षोभकारी प्रतिमाको हटानेकी माँग करनेवाला निर्दोष प्रस्ताव भारी बहुमतसे अस्वीकार कर दिया गया। कुछ निर्भीक लोगोंको छोड़कर लगभग सभी भारतीय सदस्योंने इस प्रस्तावके विरुद्ध मत दिये। इस प्रस्तावपर हुई बहससे स्वराज्यवादी मनोवृत्ति तथा अन्य सभी प्रकारकी मनोवृत्तियोंके बीचके प्रखर अन्तर स्पष्ट हो गये । यह मतदान और बहस इस तथ्यका ताजा उदाहरण है कि स्वराज्यमें जो विलम्ब हो रहा है, वह अंग्रेज "शासकों" की हठवर्मिता के कारण उतना नहीं है, जितना कि इस कारण है कि हम अपने दर्जेको पहचानने और उसके लिए काम करनेसे इनकार करते हैं। नीलकी प्रतिमाको हटानेके लिए होनेवाला यह आन्दोलन, मेरी विनम्र रायमें, हमारे लक्ष्यकी दिशा में एक कदम है। मैं नीलकी प्रतिमाको हमारी गुलामीका प्रतीक मानता हूँ, और राष्ट्रीय स्वाभिमानकी मांग है कि इसे तथा ऐसे प्रत्येक प्रतीकको हटा दिया जाये । यह आन्दोलन इस तथ्यके कारण और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि इसका लक्ष्य कोई भौतिक लाभ प्राप्त करना नहीं है। जब करोड़ों भारतीय केवल स्वाभिमानको रक्षाके लिए एक होकर अपनेको बलिदान करनेको तैयार हो जायेंगे तो स्वराज्य आसानी से प्राप्त किया जा सकेगा। यूनियन जैकका अपमान होनेपर कोई अंग्रेज व्यक्तिगत तौरपर अपमानित क्यों अनुभव करता है और इस अपमानके विरुद्ध रोष प्रकट करनेकी कोशिश में वह किसलिए अपनी जान भी दे देगा? यह कोई ऐसी भावना नहीं है जिसका तिरस्कार किया जाये या जिसे दबाया जाये। अपने झण्डेका अपमान होनेपर क्रोधव्यक्त करनेके लिए वह जो तरीका अपनाता है वह निःसन्देह अक्सर बर्बर तरीका होता है, लेकिन यदि वह इस भावनाको छोड़ दे, तो वह अपनी राष्ट्रीय एकता और जिस राष्ट्रका वह सदस्य है, उस राष्ट्रके लिए अपने-आपको उत्सर्ग कर देनेकी शक्ति खो बैठेगा । इसी प्रकार यदि हमें अपने जन्मसिद्ध अधिकारको प्रतीति होती तो हमारे लिए यह जानना गर्वकी बात होती कि ऐसे भी नवयुवक है जिन्हें हमारे बीच एक ऐसी प्रतिमाके होनेपर एतराज है जिसका होना राष्ट्रके लिए अपमानजनक है। बहसमें भाग लेनेवाले कई भारतीय सदस्योंने ऐसी प्रतीति या गर्वका कोई परिचय नहीं दिया। उनके लिए राष्ट्रकी लड़ाई लड़नेवाले ये नौजवान अज्ञानी व्यक्ति हैं, जिनका आचरण केवल निन्दाके योग्य ही है। उन्हें