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१८८. भाषण : कैण्डीको सार्वजनिक सभामें

१८ नवम्बर, १९२७

मैं इन बहुत सारे सुसज्जित अभिनन्दनपत्रों, बहुमूल्य मंजूषाओं और बहुत-सी थैलियोंके लिए आपका आभारी हूँ ।

मैंने उम्मीद की थी कि मैं आपके सामने विस्तारसे कुछ बोल सकूँगा, लेकिन इस सभाके लिए नियत ६० मिनटोंमें से ४० मिनट आपके द्वारा इन उपहारोंको स्नेहपूर्वक भेंट करने और इन अभिनन्दनपत्रोंको पढ़ने में ही लग गये हैं।

मुझे आपके इस सुन्दर द्वीपमें आ सकनेकी बहुत ज्यादा खुशी है। आपके बीच जो कुछ चन्द घण्टे मैंने बिताये हैं उनमें मुझे कैण्डीके लोगोंकी कुछ कठिनाइयों और कष्टोंके बारेमें जानकारी हुई है। मेरी इच्छा है कि मैं केवल मौखिक सहानुभूति प्रकट न करके आपकी कुछ वास्तविक सेवा कर सकता, लेकिन जो स्थिति है उसमें मुझे इतनेसे ही सन्तोष करना पड़ेगा कि मैं आपको अपनी हार्दिक सहानुभूतिका विश्वास दिलाऊँ और ईश्वरसे प्रार्थना करूँ कि किसी प्रकार आपके दुख दूर हों।

आपने अपने एक अभिनन्दनपत्रमें मुझसे कुछ करनेको कहा है ताकि बुद्ध गया आपको फिर सौंप दिया जाये। मैं आपको यह विश्वास दिला सकता हूँ कि इस सम्पत्तिको आपको वापस दिलानेके लिए मैं अपनी शक्ति-भर प्रयत्न करूँगा । (हर्ष- ध्वनि) लेकिन कितना अच्छा होता कि मैं यह सोच सकता कि आपका ताली बजाना वाजिब है, क्योंकि मुझे भय है कि मेरे तमाम प्रयत्नोंके बावजूद, आप जितना समझते प्रतीत होते हैं, आपको सहायता करनेको मेरी सामर्थ्य उसकी अपेक्षा कहीं कम है ।

इसलिए मैं आपको सावधान करता हूँ कि आप मेरे आश्वासनपर बहुत ज्यादा उम्मीद न बाँध बैठें और आपसे कहता हूँ कि आप बिना ढील डाले अपने अधिकारको मनवानेकी खातिर अपना प्रयत्न जारी रखें।

मैंने आशा की थी कि मैं आपसे चरखेके सन्देशके बारेमें कह सकूँगा क्योंकि वह आपपर भी लागू हो सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि मेरे पास जो चन्द मिनटका समय है उसे आपकी ज्यादा गम्भीर और जरूरी समस्याओंकी चर्चामें लगाना मेरा कर्त्तव्य है।

मैंने सुना है और मुझे यह जानकर दुख हुआ है कि आप लोगोंमें भी, जो बुद्धके अनुयायी हैं, अस्पृश्यताका कड़ाईसे पालन किया जाता है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह बुद्धकी भावनाके सर्वथा विरुद्ध है। और मैं बौद्धों और हिन्दुओंसे आग्रह करूंगा कि वे अपने समाजको इस अभिशापसे मुक्त करें ।

फिर आपके बीच शराबखोरीका अभिशाप प्रचलित है, जैसा कि वह संसारके दूसरे भागोंमें भी है। जहाँतक मुझे ज्ञात है, मद्यपान संसारके सभी महान धर्मोको भावनाके विरुद्ध है, और बौद्ध धर्मकी भावना के विरुद्ध तो निश्चित ही है।