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२००. भाषण : जाहिरा कालेज, कोलम्बोमें

२२ नवम्बर, १९२७

इस कालेजमें आ सकनेकी मुझे वाकई बहुत खुशी हुई है।

आपने मुझे उन सुखद दिनोंकी याद ताजा करा दी है जो मैंने दक्षिण आफ्रिकामें बिताये थे। उन दिनों मेरा जीवन लगभग पूरी तरह मेरे मुसलमान देशभाइयोंके साथ जुड़ा हुआ था और १८९३ के आरम्भमें मुझे कुछ बहुत ही अच्छे मुसलमानोंके सम्पर्कमें आनेका तथा उनको प्रभावित करनेका सौभाग्य मिला था। इसीलिए आपने जो मुझे इस हॉलमें निमन्त्रित किया है उसपर मुझे कोई आश्चर्य नहीं है।

मौलाना शौकत अलीने लंकासे लौटनेपर लंकाके मुसलमानोंकी ओरसे मुझे सन्देश दिया था कि मैं जल्दसे-जल्द लंका आऊँ । लेकिन वह और मैं, हम दोनों जिस काममें लगे हुए थे उसके कारण उस समय मेरा यहाँ आना सम्भव नहीं हो सका।

आपमें से जो लोग भारतीय समाचारपत्र पढ़नेके आदी हैं वे यह जानते होंगे कि कोलम्बो रवाना होनेसे कुछ देर पहले ही मुझे दिल्ली स्थित जामिया कालेजके प्रोफेसरों और विद्यार्थियोंसे भेंट करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था । मेरे पास आपके सामने कोई बाकायदा भाषण दे सकनेका समय नहीं है क्योंकि अभी मुझे और बहुतसे कार्य निपटाने हैं, लेकिन दिल्लीमें विद्यार्थियोंके समक्ष जो भाषण[१] मैंने दिया था उसका सार मैं दे दूंगा ।

इस महान कालेज में आप जो कुछ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं यदि उसका निर्माण निर्मल चरित्रकी बुनियादपर नहीं हुआ तो वह व्यर्थ रह जायेगी ।

जिस उत्साहके साथ यहाँ काम किया जा रहा है तथा कुछ ही वर्षोंमें जो अभूत- पूर्व उन्नति की गई है उसके बारेमें आपकी पत्रिकाओंमें पढ़ते समय मैं सराहना किये बिना नहीं रह सका। लेकिन जब मैं शिलान्यास-समारोहके अवसरपर गवर्नरके सामने पढ़ी गई रिपोर्टको देख रहा था तो उस समय मुझे यह अनुभव हुआ कि क्या ही अच्छा हो यदि हम निर्मल चरित्रकी बुनियाद तैयार कर सकें जिसपर [ गुण रूपी ] पत्थरपर पत्थर चुने जायें और जब एक इमारत तैयार हो जाये तो हम उसे हर्ष और गर्वके साथ देख सकें। लेकिन चरित्रका निर्माण गारा और पत्थरसे नहीं किया जा सकता; और न ही इसका निर्माण आपके अलावा किसी दूसरेके हाथोंसे हो सकता है। प्रिंसिपल और प्रोफेसर पुस्तकों द्वारा आपका चरित्र नहीं बना सकते। चरित्रका निर्माण तो उनके जीवनको देखकर होता है और सच पूछिए तो, इसे आपको स्वयं बनाना होता है।

ईसाई धर्म, हिन्दू धर्म तथा संसारके अन्य महान धर्मोका अध्ययन करते हुए मैंने देखा कि सब धर्मोमें अपार भिन्नता रहते हुए भी एक बुनियादी एकता तो है ही

  1. १. देखिए " भाषण: जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली में , २-११-१९२७।