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भाषण : कोलम्बोमें पारसियोंके समक्ष

और वह है -- सत्य और निष्पापत्व । 'निष्पापत्व' को आपको शब्दश: स्वीकार करना चाहिए, जिसका अर्थ है जीवहत्या और हिंसा न करना । यदि आप सब लड़के डटकर सदैव सत्य और निष्पापत्वपर दृढ़ रहेंगे तो आपको यह लगेगा कि आपने ठोस बुनियाद तैयार कर ली है ।

आपने जो उदार थैली मुझे भेंट की है उसके लिए मैं आभारी हूँ। इसका उद्देश्य भारतके लाखों क्षुधा-पीड़ितोंको काम दिलाना है। इनमें हिन्दू, मुसलमान और ईसाई सब शामिल हैं। इसलिए आपने मुझे यह दान देकर इन लाखों क्षुधा-पीड़ितों और अपने बीच एक सम्बन्ध स्थापित कर लिया है, और ऐसा करके आपने वह चीज कर दिखाई है जो ईश्वरको प्रिय है। यदि आपको यह पता नहीं होगा कि इस थैलीका उपयोग किस काममें किया जाता है तो यह सम्बन्ध बड़ा ढीला रह जायेगा । इन रुपयोंका उपयोग जैसा वस्त्र मैंने पहन रखा है उस वस्त्रके उत्पादनके निमित्त पुरुषों और स्त्रियोंको काममें लगानेके लिए किया जाता है। यदि आपको इस प्रकार तैयार होनेवाली खादीको पहननेवाले लोग नहीं मिल सके तो यह सारा रुपया बेकार हो जायेगा ।

अब हम हर रुचि और फैशनकी परितुष्टि कर सकते हैं। यदि आप भारतके लोगोंके साथ स्थायी और अटूट सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं तो आप आगे से खादी पहनने लगेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
विद गांधीजी इन सीलोन

२०१. भाषण : कोलम्बोमें पारसियोंके समक्ष

२२ नवम्बर, १९२७

आपने मुझे एक बाकायदा अभिनन्दनपत्र भेंट न कर सकनेके लिए क्षमा माँगी है। आपका अभिनन्दनपत्र तो आपके हृदयोंपर अंकित है जो कि आपने मेरे सामने खोल दिये हैं।

पारसियोंके साथ मैं एक विचित्र सम्बन्धसे बँधा हुआ हूँ। मैं जहाँ कहीं भी उनके सम्पर्कमें आया हूँ, उन्होंने मुझपर -- एक हिन्दूपर -- जो स्नेह बरसाया है, वह एक ऐसी बात है जिसे समझाया नहीं जा सकता और न जिसका रहस्य समझा जा सकता है।

मैं जहाँ कहीं भी गया हूँ पारसी भाइयोंने मुझे ढूंढ़ निकाला है । जिस समय मुझे कोई जानता तक न था और मेरे ऊपर महात्मापनका बोझ भी नहीं लादा गया था, ऐसे समयमें एक पारसीने मुझसे मित्रता की और मुझे अपना बनाया । मेरा अभिप्राय दक्षिण आफ्रिकाके प्रसिद्ध दिवंगत पारसी रुस्तमजीसे है ।

जिस समय १८९६ में डर्बनमें उतरते हुए दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंने मुझे घेर लिया और मारपीट की उस समय पारसी रुस्तमजीने अपनी जान और मालका गम्भीर खतरा उठाकर मुझे और मेरे परिवारको संरक्षण दिया। भीड़ने उनका घर