पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३८०

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२२२. पत्र : मीराबहनको

२८ नवम्बर, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारे पैरमें ऐसी क्या खराबी हो गई थी ? लेकिन ये सभी विपत्तियाँ कष्ट- सहन और अनुशासनका अंग हैं। तुम्हारे दो तारोंका उत्तर में दे चुका हूँ ।[१] जल्द- बाजीमें कोई काम मत करो । अगर तुम्हारे पैरको चिकित्साकी जरूरत हो तो अभी आश्रम न छोड़ना ही अच्छा रहेगा। क्योंकि मेरा खयाल है, मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि उड़ीसामें भी कुछ दौरा करना होगा। मुझे एक स्थानपर आराम करनेकी फुर्सत नहीं मिलेगी। लेकिन खैर, जो तुम्हें सबसे अच्छा लगे, तुम वही करना । वहाँ यदि तुम सुखी नहीं रह सकती हो तो चाहे तुम लंगड़ा रही हो अथवा ठीक हो, यहाँ चली आओ । यदि तुम अपनेको रोक सको तो जनवरी में तो हम हर हालतमें मिलेंगे। लेकिन मैं तुमसे तुम्हारे मनके खिलाफ कुछ करने को नहीं कहूँगा । तुम्हारा मन जैसा कहे, वैसा ही करो ।

तुमने पोशाकमें जिस फेरफारके बारेमें लिखा है, वह मुझे कोई बहुत चौंकाने- वाली बात तो नहीं लगती ।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी(सी० डब्ल्यू० ५२९७) से ।
सौजन्य : मीराबहन

२२३. पत्र : अब्बास तैयबजीको

जफना
२८ नवम्बर, १९२७

प्रिय भुर्र-र-र,

[२]

क्या तुमने शीरों और फरहादकी कहानी पढ़ी है ? क्या तुमने प्रेमियोंको अपने प्रियके पत्रोंसे या उसके बारेमें मिलनेवाले समाचारोंसे कभी अघाते जाना है ? तो अब क्या तुम्हें आश्चर्य होता है कि मैं तुम्हारे पत्रके लिए क्यों तरस रहा था ? मेरी रेहानाकी खोजकी कहानी भी ऐसी ही है।

फिर प्यार |

तुम्हारा,
मुर्र-र-र

अंग्रेजी (एस० एन० ९५६०) की फोटो-नकलसे ।
  1. १. देखिए पिछला शीर्षक ।
  2. २. अब्बास तैथवजी और गांधीजी आपसमें एक दूसरेको 'भुर्र-र-र' कह कर सम्बोधित करते थे।