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आरोप-पत्र

भी आशा रखते हैं कि धर्मान्ध और बहादुर मुसलमानों और जाति-रोग से पीड़ित भीत हिन्दुओंमें कभी मेल होगा ? क्या आपको कभी इसका भान हुआ है कि जबसे अहिंसा के सिद्धान्तकी बदौलत कांग्रेसमें आप मुखिया बने तभीसे साम्प्रदायिक झगड़े बराबर बढ़ते हो गये हैं ?

क्या आप कबूल नहीं करेंगे कि आपने अपने राजनीति-दर्शनको धर्म की शब्दावली का चाहे जितना भी बाना पहनाया हो, मगर उससे पण्डित मालवीय, देशबन्धु दास, लाला लाजपतराय, श्रीयुत विजयराघवाचारियर, श्री केलकर, डाक्टर मुंजे और दूसरे अखिल भारतीय नेता आजिज आ गये थे ?

क्या यह सच है कि आपने महात्मा तिलकका नेतृत्व, कमसे-कम शुरूमें ही सही, स्वीकार नहीं किया था ? तब इसकी क्या वजह है कि आप आज सामाजिक और धार्मिक किस्मके तमाम पेचीदा विवाद फिर उखाड़कर राष्ट्रीय ध्येयको हानि पहुँचा रहे हैं ? क्या आप यह नहीं समझते कि पहले से ही दब्बू किस्मके हिन्दुओंमें इससे और भी अधिक फूट फैलती है ? तब क्या इस तरह अप्रत्यक्ष रूपसे आप हमारे ध्येयके शत्रुओंके हाथमें ही नहीं खेल रहे हैं, जिनकी एकमात्र दलील यह है कि हम सामाजिक रूपसे राजनीतिक स्वतन्त्रता के अयोग्य हैं ?

क्या ऊँची जाति के सवर्ण हिन्दुओं के पवित्र मन्दिरों में, जिन्हें उन्होंने केवल अपने ही लिए बनवाया था, प्रवेश करने के लिए आप पंचमों को उत्तेजित करके ठीक काम कर रहे हैं? क्या आप अपने को त्रिनेत्र (रुद्र) समझते हैं कि युग-युगसे चली आनेवाली प्रथाओंको एक वृष्टि में भस्म कर डालें ? हाल में हमें यह जान कर आश्चर्य हुआ है कि आपने विधवा-विवाह का समर्थन करना शुरू किया है और अपरिपक्व बुद्धि नवयुवकोंको विधवाओं से विवाह करनेकी धृष्टतापूर्ण सलाह दी है। क्या आप यह नहीं मानते कि स्वामी विवेकानन्द और दूसरे लोगों ने विधवा-विवाहका समर्थन नहीं किया इसमें उनकी दूरदर्शिता ही थी, क्योंकि कुमारी कन्याओं के विवाहों में आज होनेवाली कठिनाइयों तक का उन्हें भान था । क्या हम पूछ सकते हैं कि इन सब अत्यन्त विवादग्रस्त प्रश्नों को स्वराज्य के प्रश्न के साथ मिला देनेसे एकता पैदा करनेमें कहाँतक मदद मिलेगी ? स्वराज्यका प्रश्न तो शुद्ध राजनीतिक प्रश्न है जिसके लिए आशा की जाती है कि हम सब एकमत होकर काम करेंगे ।

विज्ञान की उन्नति के इस युगमें आपका चरखा लोकप्रिय नहीं हो सकता क्या आप अपने अनुभवों के आधार पर यह नहीं सोचते कि अगर आप केवल मजदूरों के संगठन के काम में लगे रहें तो कहीं अच्छा रहेगा ?

अहिंसा-धर्म में सच्ची निष्ठा रखने के नाते क्या आपका यह कर्तव्य नहीं हो जाता कि आप उन नगरपालिकाओं से मानपत्र स्वीकार न करें जिनके यहाँ बूचड़खाने चलते हैं ?