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'रंगीला रसूल'

सरकारी संरक्षणके विरुद्ध मेरे विचार बहुत दृढ़ हैं। एक समय ऐसा भी था जब हम आजकी अपेक्षा अधिक समझदार थे और ऐसे मामलोंमें अदालतोंके संरक्षण से हावाहु-१३० दूर ही रहते थे। 'रंगीला रसूल' जैसे मुसलमान-विरोधी लेखनको रोकना हिन्दुओंका काम है, उसी प्रकार जिस प्रकार हिन्दू-विरोधी लेखनको रोकना मुसलमानोंका काम है। नेताओंका या तो इन कीचड़ उछालनेवालोंपर कोई बस नहीं रह गया है या फिर वे खुद इनसे हमदर्दी रखते हैं। जो भी हो, सरकारी संरक्षणसे हम एक-दूसरेके प्रति सहिष्णु तो नहीं बन जायेंगे। कानून सख्त बना दिये जानेपर दूसरेके धर्मसे घृणा करनेवाला हर व्यक्ति अपने विरोधीके धर्मको निन्दा करनेके लिए गुप्त तरीके अपनायेगा, या ऐसी गंदी चीजें लिखेगा जो विरोधीको क्षुब्ध तो कर देंगी, लेकिन जो ऐसे प्रच्छन्न ढंगकी होंगी कि लेखक कानूनकी दण्डात्मक धाराओंसे बच निकलेगा। लेकिन, साथ ही में यह भी जानता हूँ कि इस समय हम समझदार राष्ट्रवादियों या धर्मप्राण व्यक्तियोंकी तरह व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम धर्मकी आड़ लेकर एक- दूसरेको नष्ट कर देनेपर तुले हुए हैं।

मुझको पत्र लिखनेवाले हिन्दुओं और मुसलमानोंको भी यह समझ लेना चाहिए। कि आजकल जैसा वातावरण है, उससे मेरे मनका मेल नहीं बैठता। में यह अच्छी तरह जानता हूँ कि झगड़ा करनेवाले इन हिन्दुओं या मुसलमानोंपर मेरा कोई बस नहीं है। मैं स्वीकार करता हूँ कि इस तनावको दूर करनेका जो उपाय मेरे पास है, वह समयकी हवाके अनुकूल नहीं है। इसलिए मैं अपने मनकी शांति बनाये रखकर ही अभी सबसे अच्छी तरह देशकी सेवा करता हूँ। लेकिन, अपने इस उपायमें मेरा उतना ही दृढ़ विश्वास है जितना कि सच्ची हिन्दू-मुस्लिम एकताकी आवश्यकता और सम्भावना है। इसलिए यद्यपि मेरी लाचारी बहुत साफ है, फिर भी उसमें निराशा-जैसी कोई चीज नहीं है। और चूंकि में यह मानता हूँ कि मूक प्रार्थनामें अकसर किसी भी सक्रिय प्रयत्नसे अधिक शक्ति रहती है, इसलिए अपनी इस लाचारी- की अवस्थामें में बराबर इस विश्वास के साथ प्रार्थनारत रहता हूँ कि शुद्ध हृदयसे की गई प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं रहती। और में अपनी समस्त शक्ति लगाकर ऐसी प्रार्थनाका शुद्ध साधन बननेकी कोशिश कर रहा हूँ, जो ईश्वरको स्वीकार हो ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-९-१९२७




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