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१६. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

साबरमती
२२ सितम्बर, १९२७

[१]

प्रिय भाई,

मुझे आपके दो पत्रोंकी प्राप्ति स्वीकार करनी है। मुझे दुख है कि आपको अभीतक ट्रान्सवालके मित्रोंकी तरफसे परेशानी हो रही है । तथापि मैं आशा करता हूँ कि आपको छोड़कर उनके विरोधियोंके साथ हो जानेके कारण आप उद्विग्न नहीं होंगे। मैं यहाँ स्थितिको बराबर देख रहा हूँ और मैं आपसे कहूँगा कि यदि अय्यर[२] और उनके गुटको अपनी गतिविधियोंके बारेमें यहाँके अखबारोंमें कभी-कभार कुछ छप- वाने में सफलता मिल जाती है तो उसके बारेमें आप चिन्ता न करें। मेरी समझमें यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि जबतक में हलचल न करूँ, तबतक दक्षिण आफ्रिकाके सवालपर भारतमें कोई खास हलचल नहीं होगी। किसी न किसी तरह इतनी साख तो मेरी अब भी बनी हुई है, और आपकी पदावधिके[३] समाप्त होने तक उसके बने रहने की सम्भावना है; किन्तु जबतक [ दक्षिण आफ्रिकी ] संघ सरकार आपके साथ सहयोग कर रही है और आपके दोस्तीके हाथको अस्वीकार नहीं करती तबतक, में नहीं समझता, यहाँ हलचल पैदा करनेसे क्या फायदा होगा।

प्रागजी[४] और मेढके[५] मामलोंका परिणाम निराशाजनक है। मेरी राय में उन्होंने अस्थायी प्रमाणपत्र दिये जानेका प्रस्ताव अस्वीकार करके ठीक ही किया। में मेढके बारेमें खुफिया पुलिसकी रिपोर्टोको कोई महत्त्व नहीं देता। अगर उन्होंने कोई अपराध किया है तो सरकारको उनपर मुकदमा चलाना चाहिए, लेकिन खुफिया पुलिसकी रिपोर्टोंका उनके विरुद्ध प्रयोग नहीं करना चाहिए। वे कोई पूर्ण पुरुष भले न हों, लेकिन में नहीं समझता कि वे वहाँके, या यहाँके औसत भारतीयकी अपेक्षा ज्यादा खराब हैं। मैं मामलेको जिस ढंगसे देखता हूँ, वह इस प्रकार है । १९१४ का समझौता[६] यह था कि कमसे-कम सिद्धान्त रूप में रंगके कारण कोई प्रतिबन्ध नहीं लगने चाहिए। इसलिए प्रवासी कानूनकी भाषामें कोई रंग-भेद नहीं दिखाई पड़ता। व्यवहार में

  1. १. पत्रात्तरकी सुविधा के लिहाजते गांधीजीका स्थायी पता ।
  2. २. पी० एस० अय्यर; डर्बनसे प्रकाशित आफ्रिका क्रॉनिकलके मालिक और सम्पादक; १९११ में गिरमिटिया भारतीयोंपर ३ पौंडी कर लगानेके विरुद्ध सक्रिय आन्दोलन चलाया और ३ पौंडी कर विरोधी लीग' को स्थापनामें विशेष योग दिया और उसके अवैतनिक मन्त्री बने। देखिए खण्ड ११ ।
  3. ३. शास्त्री उस समय दक्षिण आफ्रिकामें भारत सरकारके एजेंटके पदपर नियुक्त थे ।
  4. ४ व
  5. ५. जोहानिसबर्गके दो प्रमुख भारतीय, जिन्हें भारत में कुछ समयतक रहनेके बाद वापस लौटनेपर अपने निवासके प्रमाणपत्रोंका नवीकरण कराने में कठिनाई हुई थी।
  6. ६. गांधी-स्मटस समझौता, देखिए खण्ड १२ ।