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भाषण : सार्वजनिक सभा, कनडुकातन में

प्रतिवर्ष छः व्यक्तियोंको शिक्षाके आधारपर दक्षिण आफ्रिकामें प्रवेश दिया जाना था, और जहाँतक मुझे याद पड़ता है, निवासके प्रश्नका उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। क्योंकि उनकी योग्यताएँ उनके व्यक्तित्व में निहित थीं। चूँकि में याददाश्तसे लिख रहा हूँ, इसलिए उसमें गलती होने की सम्भावना है । तथापि आप स्थितिको जाँच लेंगे और देख लेंगे कि उससे उन्हें कोई मदद मिल सकती है या नहीं। मैं आशा करता हूँ कि उनके हकमें कोई रास्ता निकल आयेगा ।

मुझे खुशी है कि आपको फीनिक्स पसन्द है, और अगर वह समय-समय पर आपकी आरामगाह बन सके तो मुझे हर्ष होगा। एन्ड्रयूजने मुझे तुम्हारे साथ हुई उस घटनाका वर्णन भेजा था। कैसे कैलनबेक आपको अपनी मोटरमें तेज रफ्तारसे प्रिटोरियासे जोहानिसबर्ग ले जा रहे थे और फिर किस प्रकार उनकी फैशनेविल गाड़ीका टायर फट गया और एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गई। मैं चाहता हूँ कि आप हो सके तो कैलनबेकको सिर्फ मुझसे मिलनेके लिए ही सही, भारत आनेको राजी करें। मुझसे मिलकर वे फिर वापस जा सकते हैं और अपना धन्धा कर सकते हैं। कुमारी श्लेसिनने आपके साथ अपनी भेंटका रोचक विवरण मुझे लिख भेजा है। जब मैं मद्रासमें था तो मैंने श्रीमती शास्त्री से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन मुझे पता चला कि वह लखनऊमें थीं।

सप्रेम,

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजी से ]
लेटर्स ऑफ श्रीनिवास शास्त्री

१७. भाषण : सार्वजनिक सभा, कनडुकातनमें

[१]

२२ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

में आपको थैलीके लिए धन्यवाद देता हूँ। आपके बीच आकर मुझे सुख है और दुःख भी । आज शाम में आपसे दिली तौरपर बात करना चाहता हूँ । वैश्य परिवार में जन्मा होनेके कारण मैं मानता हूँ कि मैं आपमें से ही एक हूँ और स्वयं चेट्टी होनेका दावा कर सकता हूँ। जब मैं डा० मेहताके साथ रंगून में था तब मुझे आप लोगोंके पारिवारिक जीवनको निकटसे देखनेका अवसर प्राप्त हुआ था। उस समय में नौजवान ही था। मुगल स्ट्रीटसे गुजरते हुए डा० मेहताने मुझे बरामदों और काउं टरोंकी कतारें दिखाई और मेरा ध्यान उन लोगोंकी ओर दिलाया जो करीब-करीब

  1. १. कनडुकातन, कराइकुडी, अमरावतीपुर और देवकोट्टामें दिये गये गांधीजीके भाषणोंके अंशोंको मिलाकर महादेव देसाईने ६-१०-१९२७के यंग इंडिया में "मैसेज टू चेट्टिनाड (चेट्टिनाडको सन्देश) " शीर्षकसे प्रस्तुत किया था।