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३४५. भाषण : क्षमाशीलतापर[१]

साबरमती
[१२ जनवरी, १९२८ से पूर्व]

निष्क्रिय विरोधकी यह चर्चा हमारे राष्ट्रीय जीवनके लिए घातक रही है। क्षमाशीलता आत्माका एक गुण है, इसलिए वह एक सकारात्मक गुण है। यह नकारात्मक नहीं है। भगवान बुद्ध कहते हैं, "क्रोधको अक्रोधसे जीतो।" लेकिन यह अक्रोध क्या है? यह एक सकारात्मक गुण है और इसके अर्थ हैं उदारता अथवा प्रेमका सर्वोच्च गुण। आपमें इस सर्वोच्च गुणका विकास होना चाहिए और उसकी अभिव्यक्ति इस तरह होनी चाहिए कि आप क्रुद्ध व्यक्तिके पास जायें, उससे उसके क्रोधका कारण जानें, यदि आपने उसको बुरा लगनेवाला कोई काम किया है तो अपनी भूल सुधारिये और इसके बाद उससे उसकी गलती का अहसास कराइए और उसको कायल कीजिए कि उत्तेजित हो उठना गलत चीज है। आत्माके इस गुणकी प्रतीति और उसका सोच-विचारकर किया गया उपयोग न केवल मनुष्यको बल्कि उसके चारों ओरके वातावरणको भी ऊँचा उठाता है। यह अवश्य है कि जिस व्यक्तिमें प्रेम है वही इसका प्रयोग करेगा। इस प्रेमको अनवरत प्रयत्न द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है।

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया १२-१-१९२८
  1. इसे महादेव देसाईके "द वीक" (यह सप्ताह) लेखसे लिया गया है जिसमें इस भाषणको "द एसेंस ऑफ फरगिवनेस" (क्षमाशीलताका सार) शीर्षकके अन्तर्गत दिया गया था। विवरणमें इससे पहले यह अनुच्छेद दिया गया है : "खादी सेवाका एक उम्मीदवार एक दिन अपनी ही तकलीफ लेकर आया था। उसने कहा कि उसे बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है और वह उपवास करके अपनेको शुद्ध करना चाहता है। इसपर गांधीजीने कहा, 'मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि उपवास हमेशा हर पापका प्रायश्चित्त नहीं होता। पाप से बचनेका एकमात्र तरीका है ईश्वरके सामने विनयपूर्वक आत्मसमर्पण, और इस आत्म समर्पण में मदद करनेके लिए किये जानेवाले उपवासके अलावा सभी उपवास व्यर्थ हैं। मैं एक ज्यादा अच्छा उपाय बताता हूँ। जिस आदमी से गुस्सा हुए हो, उसके पास जाओ, उससे क्षमा मांगो, उससे प्रायश्चित्तका तरीका बतानेको कहो, और उसे करो। यह उपवाससे ज्यादा अच्छा प्रायश्चित्त होगा।' वह मित्र गया और वैसा ही किया। लेकिन जिस व्यक्तिके साथ ज्यादती हुई है वह इस मामलेमें क्या करे? बस क्षमा कर दे? हमें बताया गया है कि क्षमा वीरोंका गुण है, लेकिन यह क्षमा है क्या? निष्क्रिय रुख? चुपचाप चोट सह लेना? बुराईका प्रतिरोध न करनेका क्या यही अर्थ है? एक शाम बातचीतका यही विषय था जिसका संक्षिप्त सार दे रहा हूँ :"