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३४६. स्वतन्त्रता बनाम स्वराज्य

कहा जाता है कि स्वतन्त्रता का प्रस्ताव लॉर्ड बर्कनहेडका माकूल जवाब है। अगर यह बात संजीदगी से कही गई है, तो यह स्पष्ट है कि हमें इसका कोई अनुमान तक नहीं कि शाही आयोग नियुक्त करने और उसकी नियुक्तिकी घोषणासे उत्पन्न परिस्थितिका ठीक-ठीक क्या उपयुक्त उत्तर हो सकता है। इस नियुक्तिके जवाब में यह जरूरी नहीं कि बड़े जोशीले भाषण दिये जायें। बड़ी-बड़ी बातें बनानेसे भी कुछ होना-जाना नहीं है; इसके लिए तो कुछ वैसा ही माकूल और भरपूर काम कर दिखाना होगा जो ब्रिटिश मन्त्री, उनके साथी और पिछलगुओंकी करनीके लायक हो। फर्ज कीजिए कि अगर कांग्रेस किसी किस्मका कोई प्रस्ताव पास न करती, मगर अपने पासके सारे के सारे विदेशी कपड़ोंकी होली जला डालती और सारे राष्ट्र से ऐसा ही करने को कहती तो कुछ हदतक यह ठीक जवाब कहा जा सकता था, पर वह भी उस नियुक्तिके अपमानका भरपूर जवाब तो नहीं ही होता। अगर कांग्रेस हरएक सरकारी कर्मचारीसे हड़ताल करा देती—ऊँचे से-ऊँचे न्यायाधीशोंसे लेकर नीचे मामूली चपरासी या सिपाही और फौजी सेनातक से उनका काम बन्द करा देती—तो वह यथेष्ट समुचित उत्तर होता। इतना तो इससे जरूर ही होता कि जिस बेफिक्री और लापरवाहीसे आजकल ब्रिटिश मन्त्रिगण और दूसरे अधिकारी हमारे गर्जन-तर्जनको सुन रहे हैं, उनका वैसा अविचलित भाव न बना रह पाता।

कहा जा सकता है कि यह परामर्श है तो सर्वथा दोषरहित, मगर मुझे इतना समझना चाहिए कि इसे अमलमें किसी तरह नहीं लाया जा सकता। मैं ऐसा नहीं मानता। आज कितने ही भारतीय हैं जो इस समय चुप तो हैं पर अपने-अपने ढंगसे उस शुभ दिनकी तैयारी कर रहे हैं जब कि हमें गुलाम बनाये रखनेवाली इस सरकारको चलानेवाला हर हिन्दुस्तानी इस अराष्ट्रीय नौकरीको लात मार देगा। कहा जाता है कि जब कुछ कर दिखानेकी ताकत न हो तो जबानपर ताला लगाये रखने में ही साहसशीलता है; अक्लमन्दी तो जरूर ही है। बिना कुछ किये महज बहादुरी भरे भाषण झाड़ना शक्तिका अपव्यय ही होगा। फिर सन् १९२० में जब देशभक्तोंने भाषणके बदले जेलखाने भरना सीख लिया, तबसे जोशीले भाषणोंकी तड़क-भड़क जाती रही। वाणी तो उनके लिए जरूरी है जिनकी जबानको काठ मार गया हो। गर्जन-तर्जन करनेवालोंके लिए तो संयम ही चाहिए। अंग्रेज शासक हमारे भाषणोंपर हमारा मखौल बनाते हैं, और उनके कामोंसे अकसर प्रकट होता है कि वे हमारे भाषणोंकी रत्ती भर भी परवाह नहीं करते और इस प्रकार बिना कुछ कहे ही वे कहीं अधिक प्रभावशाली ढंगसे हमें ताना देते हैं : "हिम्मत हो तो कुछ करो।" जबतक हम इस चुनौतीका जवाब नहीं दे सकते, मेरी सम्मतिमें, हमारी धमकानेवाली एक-एक बात, एक-एक इशारा हमारी ही अपनी जिल्लत है, अपनी नामर्दीका आप