पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिन्दुस्तानी में चलती तो फिर इस प्रस्तावके साथ जैसी बुरी बीती है, उसकी कोई गुंजाइश ही न रह जाती। तब तो सबसे अधिक जोशीले भाषण देनेवाले भी स्वराज्य शब्दके भारतीय अर्थको ही सजाने-सँवारनेमें और उनसे जैसी भी बन पड़ती इसकी शानदार या घटिया परिभाषा करनेमें ही अपनी सार्थकता मानते। क्या इससे ये "इंडिपेन्डेन्ट" लोग कुछ सबक सीखेंगे और जिसको वे आजाद कराना चाहते हैं उस जनतामें काम करनेका निश्चय करेंगे और जन-सभाओंमें, जैसे कि कांग्रेस वगैराकी सभाओं में अंग्रेजी बोलना बिलकुल छोड़ देंगे?

खुद तो मुझे उस स्वतन्त्रताकी कोई चाह नहीं, जिसे मैं समझता ही नहीं। मगर हाँ, मैं अंग्रेजोंके जुएसे छूटना चाहता हूँ। इसके लिए मैं कोई भी कीमत चुका सकता हूँ। इसके बदले में मुझे अव्यवस्था भी मंजूर है। क्योंकि अंग्रेजोंकी शान्ति तो श्मशानकी शान्ति है। एक सारे राष्ट्रके लिए जीवित होकर भी मुर्दे के समान जिन्दा रहनेकी इस स्थिति से तो कोई भी दूसरी स्थिति अच्छी रहेगी। शैतानके इस शासनने इस सुन्दर देशका आर्थिक, नैतिक और आध्यात्मिक, सभी दृष्टियोंसे प्रायः सत्यानाश ही कर दिया है। मैं रोज देखता हूँ कि इसकी कचत्रियाँ न्यायके बदले अन्याय करती हैं, और सत्यके गलेपर छुरी फेरती हैं। मैं भयाक्रांत उड़ीसाको अभी देखकर आ रहा हूँ। यह सरकार अपना पापपूर्ण अस्तित्व बनाये रखनेके लिए मेरे ही देश बन्धुओंको इस्तेमाल कर रही है। मेरे पास कई शपथ पत्र अभी रखे हुए हैं कि खुर्दा जिलेमें प्रायः तलवारकी नोकके बलपर लोगोंसे लगान वृद्धिकी स्वीकृतिके कागजोंपर दस्तखत कराये जा रहे हैं। इस सरकारकी बेमिसाल फिजूलखर्चीने हमारे राजों-महाराजोंका सिर फेर दिया है जो इसकी बन्दरके समान नकल उतारनेमें नतीजोंकी ओरसे लापरवाह हो कर अपनी प्रजाको घूलमें मिला रहे हैं। यह सरकार अपना अनैतिक व्यापार कायम रखने के लिए नीचसे-नीच काम करनेसे बाज आनेवाली नहीं है। ३० करोड़ आदमियोंको एक लाख आदमियोंके पैरों तले दबाये रखनेके लिए, यह सरकार इतने बड़े सैनिक खर्चका भार लादे हुए है जिसके कारण आज करोड़ों आदमी आधेपेट रहते हैं, शराबसे हजारोंके मुँह अपवित्र हो रहे हैं।

मगर मेरा धर्म तो हर हालतमें अहिंसापूर्ण आचरण करना है। मेरा तरीका तो बलप्रयोगका नहीं, मत-परिवर्तनका है। यह तो है स्वयं कष्ट सहन करने का, न कि अत्याचारीको कष्ट देनेका। मैं जानता हूँ कि साराका सारा देश इसे सिद्धान्तके रूपमें स्वीकार किये बिना, इसकी गहराईको समझे बिना भी इसे अपना सकता है। सामान्यतया लोग अपने हर कामके दार्शनिक पक्षको नहीं समझते। मेरी महत्वाकांक्षा तो स्वतन्त्रतासे कहीं ऊँची है। भारतवर्षके उद्धारके जरिये ही मैं पश्चिमके उत्पीड़न से पीड़ित संसारके सभी निर्बल देशोंका उद्धार करना चाहता हूँ। इस उत्पीड़नमें इंग्लैंड सबसे आगे है। हिन्दुस्तान जिस तरह अंग्रेजोंका मत-परिवर्तन कर सकता है, अगर वह करे तो एक विश्वव्यापी राष्ट्र-मण्डलका स्वयं एक मुख्य भागीदार हो सकता है जिसमें इंग्लैंड अगर चाहे तो हिस्सेदार होनेका आदर पा सकेगा। काश हिन्दुस्तान इस बात को समझ ले कि विश्वव्यापी राष्ट्र-मण्डलका एक मुख्य सदस्य बननेका उसे हक