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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उत्तर : उसका यह कथन आजकी अतिरंजनाओंके उत्तरमें है। जब किसी वर्णने श्रेष्ठताका दावा किया तब उसे इस दावेके विरुद्ध अपनी आवाज उठानी पड़ी। लेकिन उसका यह कथन वर्णके जन्म सिद्धान्तकी जड़पर प्रहार नहीं करता। वह तो एक सुधारककी भाँति असमानताकी जड़पर प्रहार करता है।
प्रश्न : वर्णका प्रचलित रूप जितना विकृत है उसे देखते क्या यह बेहतर नहीं होगा कि उसे बिलकुल छोड़ दिया जाये और बिलकुल नये ढंगसे शुरुआत की जाये?
उत्तर : हाँ, बशर्ते कि हम सृष्टिकर्ता होते। हम कलमकी एक लकीरसे हिन्दू प्रकृतिको नहीं बदल सकते। हम इस नियमको कार्यान्वित करनेका तरीका तो ढूँढ़ सकते हैं, उसे नष्ट करनेका नहीं।
प्रश्न : जब शास्त्रोंके रचयिताओंने नई स्मृतियोंकी रचना की है तो आप क्यों नहीं कर सकते?
उत्तर : काश मैं एक नई सृष्टिकी रचना कर सकता! मेरी स्थिति तब विश्वामित्र से भी खराब होगी, और वह तो मुझसे कहीं अधिक महान थे।
प्रश्न : जबतक आप वर्णका नाश नहीं करते, अस्पृश्यताको नष्ट नहीं किया जा सकता।
उत्तर : मैं ऐसा नहीं सोचता। किन्तु यदि अस्पृश्यता निवारण के सिलसिले में वर्णाश्रमका ह्रास होता हो तो मुझे कोई दुख नहीं होगा। किन्तु मेरी परिभाषाके वर्णका अस्पृश्यता से क्या वास्ता है?
प्रश्न : किन्तु सुधारके विरोधी अपने समर्थन में आपके कथन प्रस्तुत करते हैं।
उत्तर : यह तो सभी सुधारकोंके भाग्य में होता है। स्वार्थी लोग अपने हितार्थ सुधारककी बातको गलत रूपमें प्रस्तुत करते हैं, लेकिन आप यह भी जानते हैं कि उनमें से कुछ लोग चाहते हैं कि मैं हिन्दू-धर्म छोड़ दूँ। कुछ औरोंका वश चले तो वे मुझे हिन्दू समाज में से निकाल बाहर करें। मैं वर्ण धर्मका बचाव करनेके लिए कहीं नहीं गया हूँ, हालाँकि अस्पृश्यताके निवारणके लिए मैं वाइकोम गया था। खादीके प्रचार, हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना तथा अस्पृश्यताके निवारण के लिए कांग्रेस द्वारा स्वीकृत प्रस्तावका मैं रचयिता हूँ। ये तीनों चीजें स्वराज्यके तीन स्तम्भ हैं। लेकिन मैंने एक चौथे स्तम्भके रूपमें वर्ण-धर्मकी स्थापनाकी बात कभी नहीं कही है। इसलिए आप मुझपर वर्णाश्रम धर्मपर गलत जोर देनेका आरोप नहीं लगा सकते।
प्रश्न : क्या आप जानते हैं कि आपके बहुतसे अनुयायी आपकी शिक्षाओंको विकृत रूपमें प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर : क्या मैं यह बात नहीं जानता? मैं जानता हूँ कि मेरे बहुतसे अनुयायी ऐसे हैं जो केवल कहने भरके अनुयायी हैं।
प्रश्न : सामाजिक संगठनपर ब्राह्मणोंका प्रभुत्व था इसलिए बौद्धधर्मको भारतसे बाहर खदेड़ दिया गया। इसी प्रकार यदि हिन्दू-धर्मसे उनका हित साधन नहीं होता तो वे हिन्दू धर्मको भी खदेड़ बाहर करेंगे।
उत्तर : ऐसा दुस्साहस उन्हें करने तो दीजिए। लेकिन मुझे पूरा निश्चय है कि बौद्ध धर्म भारत से बाहर नहीं गया है। भारत वह देश है जिसने बुद्धकी अधिकांश भावनाको