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परिशिष्ट

आत्मसात् कर लिया है। बौद्ध धर्म और बुद्धकी भावनामें अंतर मानना चाहिए, उसी प्रकार ईसाई धर्म और ईसाकी भावनायें भी फर्क मानना चाहिए। उन्होंने बुद्धकी मुख्य शिक्षाको आत्मसात् कर लिया था इसीलिए वे बौद्धधर्मको बाहर खदेड़ने में सफल हो सके।
प्रश्न : जिस ब्राह्मणने, बौद्ध धर्मकी अच्छी बातोंको आत्मसात् कर लिया था उसीने मन्दिरोंमें अस्पृश्योंको प्रवेश करनेसे रोक कर और उनके ऊपर निर्मम निर्योग्यताएँ थोपकर अत्यन्त जघन्य अपराध किया है, जो अमृतसरमें हुए अपराध से भी ज्यादा जघन्य है।
उत्तर : आप कुछ हदतक ठीक कहते हैं। लेकिन ब्राह्मणोंको दोषी ठहराकर आप गलती करते हैं। साराका सारा हिन्दू-धर्म ही इसके लिए जिम्मेदार है। वर्ण-धर्म जब विकृत हो गया तो उससे अस्पृश्यताका जन्म हुआ। इसके पीछे कोई दुष्ट मंशा नहीं था, किन्तु जो परिणाम हुआ वह मानव इतिहासकी एक दुखद घटना है।
प्रश्न : लेकिन जबतक आप वर्णाश्रम धर्म शब्दका प्रयोग करेंगे तबतक उसके साथ जुड़ी हुई आजकी तमाम बुराइयाँ भी उसके साथ आयेंगी।
उत्तर : इससे हम यही सीखते हैं कि उसके साथ जुड़ी बुराइयोंको नष्ट करके वर्ण-धर्मको उसके शुद्ध रूपमें प्रतिष्ठित कीजिए।

आपके लिए मेरा कार्यक्रम


प्रश्न : चारों ओर घोर अस्तव्यस्तता व्याप्त है। हम पीछेकी ओर किस प्रकार लौटेंगे?
उत्तर : आपसे मुझे इतना ही कहना है कि बुनियादको नष्ट मत कीजिए, हम उसे शुद्ध करनेकी कोशिश करें। इसके बजाय आप एक नया धर्म देनेकी कोशिश कर रहे हैं जिसे अपनाने के लिए कोई तैयार नहीं है। ब्राह्मणवाद हिन्दू धर्मका पर्याय है। इसका अर्थ यह हुआ कि हिन्दू-धर्मके लिए हमारे पास जो एकमात्र शब्द था वह था ब्राह्मणवाद अर्थात् ब्रह्म विद्या, और इसे नष्ट करनेकी कोशिशमें आप हिन्दू धर्मको नष्ट करनेकी कोशिश कर रहे हैं। ब्राह्मण यदि आपके अधिकारोंका अतिक्रमण करे तो आप उसके साथ एक-एक इंचपर लड़िए, और उसे सुधारनेकी कोशिश कीजिए। लेकिन हर ब्राह्मणको गाली देनेसे कोई फायदा नहीं है। ब्राह्मण भी कई ढंगके हैं, एक ब्राह्मण कट्टर सुधारवादी है, दूसरा सुधारोंका विरोधी है। आपको अच्छे से अच्छे सुधारक ब्राह्मणोंको अपने पक्षमें करना चाहिए और उनकी सहायतासे अपने कार्यक्रमके रचनात्मक अंगको कार्यान्वित कीजिए। इससे ब्राह्मण और अब्राह्मण, दोनोंका कल्याण होगा।

सुधार-विरोधियोंसे लड़िए और उनसे कह दीजिए, 'यदि आप धन और सत्ताके पीछे भागेंगे, और यदि आप विद्वान नहीं हैं और हमें सच्चे धर्मकी शिक्षा नहीं दे सकते तो हम आपको ब्राह्मण नहीं कहेंगे।' तब उनके मनमें आपके प्रति कोई विरोधभाव नहीं होगा। आप सुधार करानेके लिए जोरदार आन्दोलन कीजिए, आप उन स्कूलों और मन्दिरोंका बहिष्कार कीजिए जो अब्राह्मणोंके प्रति भेद बरतते हैं। आपका आग्रह हो कि पुजारियोंका चरित्र शुद्ध हो, वे विद्वान हों और उनमें सांसारिक